
राजीव नयन बहुगुणा
जैन मुनि तरुण सागर के अनशन द्वारा देह त्यागने की खबर है । जैन साधुओं में यह विलक्षण है , कि वे मरने के लिए बिस्तर अथवा अस्पताल में खांसने , कलपने अथवा अपनी देह में डॉक्टर की सुई घुसेड़ने की प्रतीक्षा नहीं करते । जब उन्हें लगता है कि देह के रूप में उनकी भूमिका पूर्ण हो चुकी है , तो वे अन्न , जल त्याग कर मर जाते हैं । इसे संथारा कहा जाता है । शनैः निकट आती मृत्यु का इस तरह आत्म वरण करना कुछ क्रूर भले हो , लेकिन अद्भुत है ।
आधुनिक युग मे महान स्वाधीनता सेनानी , क्रांतिकारी तथा ब्रह्म ज्ञानी विनोबा भावे ने भी लगभग 25 साल पहले इसी तरह अन्न , जल त्याग कर मृत्यु का वरण किया था । ऐसा उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा स्वयं को गो रक्षा के मुद्दे पर स्वयं को ठगे जाने के फलस्वरूप किया । लेकिन जैन मुनि किसी क्षोभ के कारण अनशन नहीं करते , बल्कि आत्म प्रेरणा से करते हैं ।
दिगंबर समुदाय के जैन साधु नङ्गे रहते हैं , लेकिन उनकी सोच आदिम नहीं , अपितु आधुनिक होती है । वे कपड़े नहीं पहनते, पर अपनी अध्ययन शीलता के कारण नज़र का चश्मा पहनते हैं.
इसके विपरीत हमारे अनेक नागा साधु सुल्फेडी , क्रोधी और हिंसक होते है ।
मैंने वर्षों तक जैनियों के स्वामित्व वाले अखबार में नौकरी की , अतः अनेक जैन मुनियों को कवर किया , मजबूरन उनकी बक बक सुनी एवं उनके निकट संपर्क में आया ।
इस संदर्भ में एक रोचक घटना घटी . मुझे सुदूर राजस्थान में, जैनियों के एक तीर्थ विवाद की रिपोर्टिंग करने भेजा गया. मालिकान के निर्देश पर सुबह सुबह मेरे घर पर दफ्तर की गाड़ी आयी और मुझे ले चली . यह नहीं बताया गया, कि मुझे करना क्या है . सब गफलत में रहे.
घटना स्थल पर पहुंच मैंने प्रशासन या मंदिर समिति से मिलने की बजाय ग्रामीणों के बयान लिए . मेरा यही तरीक़ा था .
ग्रामीणों ने मुझे बताया, जो सच भी था , कि मंदिर की आड़ में कुछ धन पशु उनके चरागाह पर कब्ज़ा किया चाहते हैं . कुछ देर बाद मुझे मंदिर समिति की ओर से सु स्वादु भोजन का बुलावा आया . मैं जनजातीय मीणा ग्रामीणों के साथ बाजरे की रोटी और मट्ठे से पेट भर चुका था , अतः विनम्रता पूर्वक माफ़ी मांग ली.
देर रात दफ्तर लौट मैंने रपट लिखी कि कुछ बदमाश धर्म की आड़ में निरीह आदिवासियों को सता रहे हैं.
उतनी रात न तो दफ्तर में सम्पादक मौज़ूद थे , न कोई अन्य सीनियर. अतः मेरी रपट पहले पेज पर हू ब हू छप गई .
जैनियों के अख़बार में उन्हीं के विरुद्ध करारी, लेकिन सच्ची रपट छप जाना अभूतपूर्व था. हा हा कार मच गया.
उस वक़्त टाइम्स ग्रुप के सर्वे सर्वा एक विद्वान एवं मानवीय सज्जन साहू रमेश चंद्र जैन थे . उन्होंने सारा मामला समझने के बाद मुझसे खंडन छपवा कर मेरी जान छोड़ दी.
जैन मुनियों के प्रवचन सर्वाधिक वैज्ञानिक एवं अर्थ पूर्ण होते हैं । वे कभी अंध विश्वास एवं साम्प्रदायिकता नहीं फैलाते । सतत अध्ययन शील होते हैं । आचार्य तुलसी समेत अनेक जैन मुनियों को कवर करने जब जब अपनी नौकरी के दौरान मैं गया , तो उन्होंने मुझे अच्छा भोजन कराया , तथा उपहार भी दिलाये ।
इन मुनियों का निजी जीवन सादा एवं अनुशाषित होता है , लेकिन जिन जैन बनियों के घर वे ठहरते हैं , वे प्रायः अव्वल दर्जे के दुष्ट होते हैं । बनियों में सर्वाधिक क्रूर एवं धूर्त जैन बनिया ही होता है । वनस्पति घी में गाय और सुअर की चर्बी मिलाने वाला बनिया भी जैन था । सुपठित युवा पीढ़ी को आपने बौद्धिक शब्द जाल से नीम पागल बनाने वाला रजनीश मोहन भी जैन ही था. और ठग तांत्रिक चंद्रा स्वामी भी.
यद्यपि मैने भगवान महावीर समेत आचार्य तुलसी और महाप्रज्ञ जैसे अनेक जैन मनीषियों को पढा है , और उन्होंने मुझे प्रभावित किया । लेकिन तरुण सागर जी को मैने सिर्फ tv पर देखा , सुना है । वह सुबह सुब्ह बहुत बुरी तरह चीखते थे , जो मुझे अच्छा नहीं लगता था । उन्होंने कम उम्र में समाधि ले ली । मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ ।
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