देहरादून। शनिवार को देहरादून, चमियाला, पौड़ी, श्रीनगर, अगस्तमुनि, अल्मोड़ा, रामगढ, और अन्य जगहों में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली और पेशावर काण्ड की याद में कार्यक्रम आयोजित किए गए। सैकड़ों लोग इन कार्यक्रमों में शामिल हुए। इसके आलावा प्रदेश भर में लोगों ने छोटे छोटे समूह में बैठ कर उनके सिद्धांतों पर चर्चा की। सोशल मीडिया पर #इंसानियतमेरीविरासत और #वीरचंद्रसिंहगढ़वालीअमररहे हैशटैग के साथ लोगों ने फोटो पोस्ट किया। “हमारी विरासत” के नाम से इन कार्यक्रमों द्वारा राज्य के बुद्धिजीवियों और आंदोलनकारियों ने गढ़वाली जी की शौर्यागाथा को याद कर बताया की आज नफरत, झूठ और भय से भरा हूए माहौल में उनके सिद्धांत और ज़रूरी है।
देहरादून की जनसभा में वक्ताओं ने कहा कि अंग्रेज़ों ने नफरत और झूठ का इस्तेमाल कर अपना राज जारी रखने की कोशिश की थी। इसलिए 1930 में, जब स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेते हुए दसियों हज़ार पठान मुसलमान सत्याग्रह कर रहे थे, अंग्रेज़ों को लगा कि गढ़वाल रेजिमेंट को धर्म के आधार पर भड़का कर पठानों को कुचला जा सकता है। लेकिन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके सिपाहियों ने अपनी इंसानियत और देशभक्ति नहीं खोई। जिसकी वजह से गढ़वाली जी को 14 साल जेल में रहना पड़ा। आज़ादी के बाद भी गढ़वाली जी लगातार न्याय के लिए लड़ ते रहे। ऐसे ही इंसानियत और लोकतान्त्रिक विचार आज भी बहुत ज़रूरी है।
वरिष्ठ लेखक डॉ जीतेन भारती; भारतीय किसान सभा के गंगाधर नौटियाल; वरिष्ठ इतिहासकार डॉ भरतवाल; वरिष्ठ पर्यावरणविद डॉ रवि चोपड़ा; चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल और सुनीता; उत्तराखंड महिला मंच के निर्मला बिष्ट; CPM के SS सजवाण; भारत ज्ञान विज्ञानं समिति के विजय भट्ट; उत्तराखंड लोकतान्त्रिक मोर्चा के SS पांगती और PC थपलियाल; वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट; डॉ विजय दसमाना; फ्रेंड्स ऑफ़ हिमालय के प्रेम बहुखंडी; और अन्य वरिष्ठ बुद्धिजीवी एवं आंदोलनकारियों ने देहरादून की जनसभा को सम्बोधित किया। भारत ज्ञान विज्ञानं समिति के उमा भट्ट जी ने देहरादून की जनसभा का सञ्चालन की। महिला मंच के कमला पंत जी कार्यक्रम के अध्यक्ष रहे।