एक ऐतिहासिक समारोह के दौरान, अटल टनल को आधिकारिक तौर पर वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स द्वारा ‘10,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग’ के रूप में मान्यता दी गई है। सीमा सड़क संगठन के महानिदेशक (डीजीबीआर) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने मनाली को लाहौल-स्पीति घाटी से जोड़ने वाली इस उत्कृष्ट इंजीनियरिंग के निर्माण में सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की शानदार उपलब्धि के लिए पुरस्कार प्राप्त किया।इस सुरंग की आधार शिला UPA की अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने 2010 में रखी थी जिसे गायब कर दिया गया था। आधारशिला का पत्थर गायब होने के मामले को लेकर विवाद भी हुआ था।
वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स यूके, एक ऐसा संगठन है जो मान्यता प्राप्त प्रमाणीकरण के साथ दुनिया भर में असाधारण रिकार्ड्स को सूचीबद्ध तथा सत्यापित करता है। इस हाईवे सुरंग को बनाने की प्रक्रिया डॉ ० मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 28 जून 2010 से शुरू की गई थी ।अटल टनल का इतिहास लगभग स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का है जब प्रधानमंत्री नेहरू ने पहली बार 1960 में स्थानीय जनजातियों के साथ रोहतांग दर्रे के लिए एक रस्सी के रास्ते पर चर्चा की।
दूरदर्शी परियोजना और राष्ट्र का गौरव अटल टनल 03 अक्टूबर 2020 को राष्ट्र को समर्पित की गई थी। रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण 9.02 किलोमीटर लंबी अटल टनल ‘रोहतांग दर्रे’ से गुजरती है, इसका निर्माण मनाली-लेह राजमार्ग पर अत्यंत कठिन इलाके में ठंड के तापमान की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में किया गया था। इस सुरंग के निर्माण से पहले तक, यह राजमार्ग लाहौल और स्पीति को मुख्य भूमि से अलग करते हुए सर्दियों के मौसम में छह महीने तक बंद रहा करता था। अटल टनल के निर्माण से मनाली-सरचू सड़क पर 46 किलोमीटर की दूरी और यात्रा के समय में चार से पांच घंटे तक की कमी आई है, जिससे मनाली-लेह राजमार्ग पर सभी मौसमों में कनेक्टिविटी उपलब्ध हो गई है।
हिमालय के पीर पंजाल पर्वतमाला में तैयार की गई इस सुरंग का निर्माण तकनीकी और इंजीनियरिंग कौशल की उतनी ही कठिन परीक्षा है, जितनी मानव सहनशक्ति और मशीनी प्रभावकारिता की। इसका निर्माण अत्यंत कठोर एवं चुनौतीपूर्ण इलाके में किया गया है, जहां सर्दियों में तापमान शून्य से 25 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है और अक्सर सुरंग के अंदर का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। इसको बनाते समय नाजुक भूविज्ञान और सेरी नाला के रिसाव जैसी समस्याएं सामने आई हैं, जो अटल सुरंग में बाढ़ का कारण बनती हैं। इसके साथ ही उच्च भार और अत्यधिक बर्फबारी के रूप में कुछ प्रमुख निर्माण दिक्कतें भी थीं, लेकिन बीआरओ के कर्मचारियों ने इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया।
अटल टनल के निर्माण की मुख्य आधाशिला 26 मई 2002 को रखी गयी थी जिसकी लागत 500 करोड़ रूपये थी। हालांकि यह परियोजना मई 2003 तक पेड़ की कटाई के चरण से आगे नहीं बढ़ी। उसके बाद लगभग 4 साल बाद मनमोहन सिंह की सरकार ने SMEC (स्नो माउंटेन इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन) इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड, एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी को अटल टनल के निर्माण को कांट्रेक्ट दे दिया और इसके पूरा होने की तारीख 2014 तक बढ़ा दी गयी थी।सितंबर 2009 में, एएफसीओएनएस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, शापूरजी पल्लोनजी समूह की एक भारतीय निर्माण कंपनी और एसटीआरएएबीएजी एजी, ऑस्ट्रिया दोनों को संयुक्त रूप से इस परियोजना पर काम करने के लिए चुना गया। इसके बाद भी इसके निर्माण में कई चुनोतियों का सामना करना पड़ा लेकिन उसके बाबजूद भी 15 अक्टूबर 2017 को दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित अटल टनल सुरंग का निर्माण पूरा हो गया।भले ही सुरंग के उद्घाटन का ऐतिहासिक फोटो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने खिंचवा लिया हो मगर इस का असली श्रेय मनमोहन सिंह की UPA सरकार को जाता है।
सीमा सड़क संगठन ने अपने आदर्श वाक्य ‘कनेक्टिंग प्लेस कनेक्टिंग पीपल’ के अनुरूप अटल टनल, रोहतांग में आधुनिक इंजीनियरिंग का यह चमत्कारिक निर्माण किया है। यह सुरंग देश के महत्वपूर्ण लद्दाख क्षेत्र को एक वैकल्पिक लिंक मार्ग उपलब्ध करा कर सशस्त्र बलों को रणनीतिक लाभ देने के अलावा, हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले के निवासियों के लिए भी एक वरदान बन रही है। अटल टनल के निर्माण से इस क्षेत्र में पर्यटकों के आगमन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। एक वर्ष से कुछ अधिक समय में ही घाटी और राज्य ने सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में तेजी से विकास देखा है।