उत्तराखंडराजनीति

आओ सब मिल लड़ें जंग जन जन का हो उत्तराखंड

अल्मोडा। उत्तराखंड में चिपको , वन बचाओ , नशा नहीं रोजगार दो , नानीसार व छात्र- युवा आंदोलनों की कोख से निकली उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी (उपपा का छठा द्विवार्षिक महाधिवेशन  7 -8 अक्टूबर 2022 को रामनगर में होने जा रहा है।
कोरोना काल के बाद यह महाधिवेशन एक ऐसे समय में हो रहा है जब पूरा देश खासकर उत्तराखंड कमरतोड़ महंगाई, बेरोजगारी और समाज में लगतार बढ़ती असमानता व गैरबराबरी से जूझ रहा है। समय- समय में अच्छे दिन आएंगे, कालाधन जब्त होगा, प्रतिवर्ष दो करोड़ युवाओं को रोजगार देंगे, किसानों की आय दुगुनी होगी जैसे नारे देने वाली मोदी सरकार अपने स्वदेशी के नारे को भूलकर 1990 में कांग्रेस द्वारा शुरू की गई उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण की नीतियों पर तेजी से आगे बढ़ रही है। पूरे देश में सरकारी एवं पक्की नौकरियां समाप्त कर ठेके की नौकरियों से बेरोजगार युवाओं का भविष्य चौपट किया जा रहा है। सेना में स्थाई सैनिकों की नहीं अग्निवीरों की भर्ती हो रही है। मजदूरों के हित में बने कानूनों को तेजी से बदला जा रहा है। किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन के दबाव में सरकार ने तीन काले कृषि कानून वापस तो लिए लेकिन किसानों को उनकी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की घोषणाओं से सरकार पीछे हट गई है। एक ओर सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में पूंजीपतियों के लगभग 11लाख करोड़ रुपए के ऋण माफ किए हैं वहीं दूसरी ओर पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, जीवन रक्षक दवाओं यहां तक कि बच्चों के दूध पर भी जीएसटी की मार है। जनता के टैक्स से दी जा रही मामूली सुविधाओं को मुफ्त की रेवड़ी कहा जा रहा है। शिक्षकों, कर्मचारियों, सैनिकों की पेंशन बंद करने का फैसला लेने वाले हमारे मंत्री, सांसद, विधायक कई- कई पेंशन और भत्ते लेकर देश में एक जैसे कानून लागू करने का उपदेश दे रहे हैं ।
साथियों, देश में आम लोगों के साथ हो रहे इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ताओं, प्रतिपक्ष व आंदोलनकारियों को दुश्मन की तरह चिह्नित करना और उनके खिलाफ तमाम जांच एजेंसियों का दुरुपयोग इस देश में अब आम हो गया है जिससे ध्यान बंटाने के लिए देश में सांप्रदायिक व जातीय उन्माद फैलाने के साथ गोदी मीडिया को मैदान में उतारा गया है।
साथियों, देश में चल रही यह प्रक्रिया उत्तराखंड को भी बदहाल कर रही है। जिस अलग राज्य के सपने को साकार करने के लिए उत्तराखंड की जनता ने अभूतपूर्व ऐतिहासिक संघर्ष किया, खटीमा, मसूरी और मुजफ्फरनगर कांड की काली रातों के अंतहीन अत्याचार सहे उसे दिल्ली के इशारों पर चलने वाली कठपुतली सरकारें बर्बाद कर इतना बदरंग, खोखला और अशांत बना देंगीं जनता ने स्वप्न में भी इसकी कल्पना नहीं की होगी। उत्तराखंड में पिछले 22 वर्षों में कथित राष्ट्रीय पार्टियों की जो सरकारें रही हैं, इनके नेता भले ही उत्तराखंडी हों पर उनको उत्तराखंड की परिस्थितियों के अनुरूप फैसले लेने का अधिकार नहीं है राज्य के सारे फैसले दिल्ली से लिए जाते हैं जो इस राज्य की दुर्दशा का बड़ा कारण है। एक अलग राज्य बनने के बावजूद उत्तराखंड के अधिकांश पर्वतीय क्षेत्र पलायन व विस्थापन का दंश झेल रहे हैं एवं शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की मूलभूत जरूरतों के लिए तरस रहे हैं। एक सोची- समझी साजिश से उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त व चकबंदी को ठंडे बस्ते में डालकर उत्तराखंड की आर्थिकी का आधार रहे कृषि क्षेत्र को चौपट कर इन जमीनों पर राजनैतिक संरक्षण प्राप्त बाहरी लोगों, भू माफियाओं और बिल्डरों के कब्जे कराए जा रहे हैं जिसके लिए कृषि भूमि की असीमित खरीद की छूट देने का कानून बनाया गया है। मित्रों, उत्तराखंड की इस बदहाली व बर्बादी की जिम्मेदार हमारी वे सरकारें हैं जिन्हें राज्य की जनता ने इस राज्य को सुव्यवस्थित, पारदर्शी व न्यायपूर्ण तरीके से विकास का जिम्मा सौंपा था लेकिन ये लोग निर्लज्जता से राज्य को लूट रहे हैं और हर क्षेत्र में घपलों व घोटालों के नए कीर्तिमान बना रहे हैं। राज्य बनने के बाद सरकारी नौकरियों में भर्तियों, प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक और सामूहिक नकल कराने का धंधा तेजी से बढ़ा है। शिक्षा क्षेत्र में सैकड़ों – करोड़ों के छात्रवृत्ति घोटालों, निजी अस्पतालों में फर्जी बिलों, सहकारी विभाग में कंप्यूटरीकरण जैसे घोटालों का रह – रह कर उठने वाले शोर से पता चलता है कि इस देवभूमि की व्यवस्था भ्रष्टाचार की खेती के लिए कितनी अनुकूल हो गई है। मित्रों, उत्तराखंड में सामाजिक बदलाव, विकास एवं शोषित व पीड़ित समाज के पक्ष में काम करने वाले सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ता व आंदोलनकारी यदि राष्ट्रीय दलों के राजनीतिक विकल्प की भी चिंता करते तो उत्तराखंड की स्थितियां ऐसी नहीं होती। लेकिन आज दो अभी दो, उत्तराखंड राज दो के नारे के विचार के इर्द- गिर्द सिमटे राजनीतिक चिंतन ने जहां राष्ट्रीय दलों का रास्ता साफ किया वहीं एक अवसरवादी दल के नेताओं ने इन्हीं दलों के साथ सत्ता में भागीदारी कर राज्य में क्षेत्रीय दलों की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न चिह्न लगा दिए। जिसका खामियाजा उत्तराखंड आज भी भुगत रहा है। इस अवसरवादी सोच का ही परिणाम है कि उत्तराखंड के प्राकृतिक संसाधन, जल, जंगल और जमीन पर कब्जा करने वाली, विकास के नाम पर  जनविरोधी राजनीति के वाहक अब हेलंग में औद्योगिक सुरक्षा बल व पुलिस लगा कर ग्रामीण महिलाओं की घास लूटने लगे हैं। मित्रों, उत्तराखंड की इस तस्वीर को बदलने के लिए ही उत्तरखंड परिवर्तन पार्टी जनवरी 2009 को गैरसैंण में अस्तित्व में आई। उपपा ने पिछले 13 वर्षों में इस राज्य के खलनायकों, भू, खनन व शराब माफियाओं को चुनौती दी है, उन्हें सड़क से लेकर न्यायालयों में धूल चटाई है। 2018 में बने भू कानून ने इस प्रदेश को माफिया की गोद में बिठा दिया है। राज्य गठन के इन 22 वर्षों में सत्तारूढ़ सरकारों की नीतियों ने इस सुन्दर और सक्षम प्रदेश को पलायन प्रदेश बना दिया है। पर यहां के जन ने, जन अधिकारों के लिए चिपको आंदोलन दिया तो भूमाफिया के खिलाफ नैनीसार सीना तान कर खड़ा हो गया।
‘उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी’  इन जनविरोधी नीतियों के खिलाफ हमेशा से संघर्षरत रही है। ‘उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी’ की मांग है कि गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाया जाए। पार्टी की इस बात को लेकर स्पष्ट राय है कि उत्तराखंड के जमीनों को बचाने के लिये धारा- 371 और हिमाचल की तर्ज पर भूमि कानून की धारा-18 को लागू किया जाये। उत्तराखंड की जमीनों की पैमाइश कर ठोस भू-प्रबंधन कानून लाया जाये। हमने पार्टी की स्थापना के समय जो घोषणा पत्र जारी किया था उसमें मांग की थी कि राज्य में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के अनुसार ठोस पंचायतीराज एक्ट आना चाहिये, जिससे ग्राम सरकार की कल्पना साकार की जा सके। पार्टी मानती है कि उत्तराखंड जैसे राज्यों में संविधान द्वारा प्रदत्त जन प्रतिनिधित्व की परिभाषा की जानी चाहिये। इसके अनुसार लोकसभा और विधानसभा का परिसीमन जनसंख्या नहीं, बल्कि भौगोलिक आधार पर किया जाना चाहिये। उत्तराखंड में जिलों की मांग राज्य बनने से पहले की है। जिलों के लिये आज भी जगह-जगह आंदोलन चल रहे हैं। पार्टी मानती है कि राज्य में जिलों का नया परिसीमन कर नये जिले सृजित किये जायें। ‘उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी’ मानती है कि बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को तुरंत बंद किया जाये और पंचेश्वर जैसे विनाशकारी बांधों को बनने से रोका जाय। वन गांवों में रह रहे लोगों को आजादी के 75 साल बाद भी बुनियादी मूल सुविधायें उपलब्ध नहीं है हमारा मानना है कि प्राकृतिक संसाधनों पर पहला अधिकार स्थानीय लोगों का होना चाहिये लेकिन  परिवर्तन पार्टी ने उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बड़ा आंदोलन चलाया है। राज्य में लगातार बंद हो रहे स्कूलों और पी .पी .पी .मोड पर दिये जा रहे अस्पतालों की नीति तुरंत बंद होनी चाहिये। शिक्षा और स्वास्थय को व्यापार बना दिया गया है जबकि यह सेवाएं समानता के आधार पर हर नागरिक को उच्च गुणवत्ता के साथ प्राप्त होनी चाहिए। शिक्षा और स्वास्थ्य के लिये मानकों की आड़ में जनता से छल बंद होना चाहिये।  हमारा उद्देश्य उत्तराखन्ड को ‘नशामुक्त-माफियामुक्त उत्तराखंड’ बनाना है और हम राज्य में राजस्व के नाम पर नशे को बढ़ावा देने वाली नीति का विरोध करते हैं। इसके लिये राज्य के विभिन्न हिस्सों में चले शराब विरोधी आंदोलनों में पार्टी शामिल रही है। ‘उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ‘ राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार और राजनीतिक दलों ने जिस तरह राज्य को लूट का उपनिवेश बनाया है उसका प्रतिकार करती है।
साथियो, ‘उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी’ मानती है कि उक्त सभी समस्यायें राजनीति से उपजी हैं, इनका समाधान भी राजनैतिक तरीके से ही होगा। भाजपा-कांग्रेस जैसी जनविरोधी पार्टियों के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई की जरूरत है। परिवर्तन पार्टी लगातार इनकी जन विरोधी नीतियों का प्रतिकार करती रही है और इस कारण सरकारी दमन भी झेलती रहती है। इन जन पक्षीय लड़ाईयों में आप सबका सहयोग अपेक्षित है।
आइए इसी परम्परा को आगे बढ़ाएं, 7 -8 अक्टूबर को रामनगर पहुंच कर ‘उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ‘ के वार्षिक सम्मेलन में शामिल हों और भविष्य की नीतियां बनाने में सहायक बने।

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