nsहरादून। आमतौर पर अपने अभ्यास और रिजाल में लीन रहने वाले लोककलाकारों ने शोषण के खिलाफ संस्कृतिविभाग के खिलाफ तान छेड़दी है।
सूबे मेंकोरोनाकाल के दौरान लोक कलाकारों को राहत देने के लिएपर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने एक हजार राहत देने की घोषणा की थी तो संस्कृति विभाग ने ऐसे कड़े निययम बना दिए कि अधिकांश लोक कलाकार इसके दायरे में ही नहीं आ रहे हैं।साथहीकागजी कार्रवाई में ही इतना पैसाऔर समतयखर्च हो रहा है कि राहत आफत बन गई। हाल ही में मुख्यमंत्री श्री धामी ने घोषणा की कि वे लोक कलाकारो को कोरोना काल के लिए अगले छः माह तक प्रति माह प्रति कलाकार दो हजार रूपय राहत देंगे। इस पर भी संस्कृति विभाग लोक कलाकरो से नोट्रीज सहित शपथ पत्र मांग रहे हैं कि उनके दल में उनके परिवार का एक भी सदस्य नही है। यही अहम सवाल है? क्या संस्कृति विभाग का यह रवैया लोक कलाकरो के प्रति व्यवहारिक है या यहां पर संस्कृति विभाग लोक कलाकारो के मानवाधिकार का हनन कर रहा है।
गौरतलब हो कि राज्य के लोक कलाकारो ने संयुक्त रूप से संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज को अवगत करवाया कि मुख्यमंत्री की घोषणा और संस्कृति विभाग के अनुसार सभी सांस्कृतिक दलो ने अपने अपने सभी कलाकारों के दस्तावेज इस आशय से संस्कृति विभाग में जमा करवाये कि उन्हें कोरोना काल की आर्थिक सहायता मिलेगी। किन्तु अब विभाग सभी दलों से एकसौ रुपये का ऐसा शपथ पत्र नोटरीज सहित मांग रहा है कि उन्होंने जो दस्तावेज जमा किये है उनमें उनके परिवार का कोई भी सदस्य नही है, लिहाजा उन्हें आर्थिक सहायता दी जाए।
कलाकारो ने आरोप लगाया कि संस्कृति विभाग की महानिदेशक स्वाती भदौरिया ने यदि यह कानून स्वयं बनाया है तो वे इसके विरोध में सड़को पर उतरने के लिए बाध्य होंगे। इधर समता अभियान ने एक बयान के मार्फत कहा कि वे लोक कलाकारो के मानवाधिकारों के हनन के मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ले जायेंगे। अभियान के संयोजक दिनेश भारती ने कहा कि जिस अधिकारी ने यह नियम बनाया है उससे भी ऐसा शपथ पत्र लिया जाय कि उनके परिवार से कोई भी व्यक्ति उनके सिवा सरकारी नौकरी में नही है। यदि पाया गया तो तत्काल प्रभाव से हटा दिया जाय या वे खुद त्याग पत्र दे दे।