दस साल सजा वाला अध्यादेश मात्र भ्रष्टाचार, दमन को बढ़ावा देगा: विपक्षी दल एवं जन संगठन

आज राज्य के पांच विपक्षी दलों (उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, CPI, CPI(M), CPI(ML), SP) के साथ राज्य के विभिन्न जन संगठनों ने राजभवन में एक पत्र सौंपा कर राज्यपाल से आग्रह किया कि वे 7 जुलाई को मंत्रिमंडल बैठक में अध्यादेश लाने के निर्णय पर स्वीकृति न दे।
बतौर विपक्षी दल एवं जन संगठन, अतिक्रमण के नाम पर लाया जा रहा अध्यादेश से मात्र भ्रष्ट अधिकारीयों एवं दमनकारी नेताओं को लाभ होगा। पत्र द्वारा उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र में राज्य के लाखों निवासियों जिनमें, वन गांव, गुजर बस्तियां, हरीनगर के नाम से दलित परिवारों को दी गई भूमि और जल तथा अन्य परियोजनाओं के कारण विस्थापित लोगों की स्थिति को ध्यान में नही रखा गया हे।
वन अधिकार कानून पर अमल आज तक राज्य में शून्य है, शहरों में न घर बनाये गए हैं और न ही 2016 का नियमितीकरण वाले अधिनियम पर कोई अमल हुआ है, पहाड़ों में बंदोबस्त भी नहीं किया गया है, और बहुत सारे क्षेत्र – जैसे सिविल सोयम ज़मीनों – को बिना सर्वेक्षण करते हुए और बिना लोगों के हक़ों को मान्यता देते हुए वन ज़मीन में शामिल किया गया है। 2018 में भू कानून में किए गए संसोधनों से भूमि की खरीद बिक्री पर किसी भी तरह की सीमा नहीं रह गई है और भू माफिया सक्रिय है।
इसके अतिरिक्त “अतिक्रमण को उकसाना” अपराध घोषित करना और निजी ज़मीन को इस कानून के दायरे में लाना व्यापक और अस्पष्ट क़ानूनी प्रावधान हैं जिनके दुरूपयोग होने की पूरी सम्भावना है। ऐसे स्थिति में दोनों पर्वतीय और तराई क्षेत्रों में दसियों लाख लोग इस अध्यादेश के प्रावधानों के अनुसार अपराधी घोषित किये जा सकते हैं। ऐसे कानून से मात्र भ्रष्टाचार और गरीब विरोधी अफसरों एवं नेताओं को बढ़ावा मिलेगा।
विषय: भूमि पर अतिक्रमण (निषेध) अध्यादेश, 2023 के संबंध में।
महोदय,
8 जुलाई को राज्य के अख़बारों में आयी हुई खबरों के अनुसार 7 जुलाई को राज्य के मंत्रिमंडल के द्वारा उपरोक्त अध्यादेश लाने का निर्णय लिया गया है। अध्यादेश में प्रावधान हे कि उत्तराखण्ड में सरकारी, सार्वजनिक और निजी परिसंपत्तियों पर अनधिकृत कब्जा अथवा अतिक्रमण गैर जमानती और संज्ञेय अपराध माना जाएगा। अतिक्रमणकारी अथवा अवैध कब्जाधारक को दंड के रूप में अधिकतम 10 वर्ष के कारावास की सजा दी जा सकेगी। कब्जा की गई भूमि का बाजार मूल्य वसूल किया जाएगा। अतिक्रमण के मामलों की सुनवाई को स्पेशल कोर्ट का गठन होगा। इसके अतिरिक्त अगर कोई भी अतिक्रमण के लिए किसी को “उकसायेगा”, उसको भी ऐसी ही सजा मिल सकती है। साथ ही यह भी कहा गया हे कि यह अध्यादेश नए पुराने सभी तरह के अतिक्रमण पर लागू होगा।
महोदय, इस निर्णय को लेते वक्त पर्वतीय क्षेत्र में भूमि व्यवस्थाओं सहित राज्य के लाखो निवासियों जिनमे गोठ – खत्ते,वन गांव ,गुजर बस्तियां , हरीनगर के नाम से दलित परिवारों को दी गई भूमि और जल तथा अन्य परियोजनाओं के कारण विस्थापित लोगो की स्थिति को ध्यान में नही रखा गया हे। इसके अतिरिक्त राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में न तो पूर्व निश्चित बंदोबस्ती की गई है और न चकबंदी ।पर्वतीय क्षेत्र में लोगों ने अपनी सुविधानुसार भूमि की अदला बदली भी व्यापक तौर पर की हुई हे। इस अध्यादेश के कारण वनों में स्थित सभी सरचनाये मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों से लेकर खरक और जल स्रोत ,रास्ते भी अतिक्रमण की श्रेणी में आ जाएंगे तथा इन सब के हितों पर इस अध्यादेश का व्यापक ,विपरीत प्रभाव पड़ेगा और लाखों लोग अतिक्रमणकारी की श्रेणी में आ जाएंगे ।
हम ख़ास तौर पर आपके और सरकार के संज्ञान में निम्न तथ्यों को लाना चाहेंगे:
– उत्तराखंड राज्य में वन अधिकार अधिनियम 2006 पर अमल नहीं किया गया है। अधिकांश उत्तराखंडी लोग इस कानून के दायरे में आते हैं और इसके अंतर्गत वन ज़मीन एवं संसाधनों पर उनके क़ानूनी हक़ है। लेकिन 17 साल बीतने के बावजूद आज तक पुरे राज्य में इस कानून के तहत स्तिथि शून्य ही हे। जब तक इस कानून पर अमल नहीं होता है, किसी भी पात्र व्यक्ति को “अतिक्रमणकारी” कहला कर बेदखल करना क़ानूनी अपराध है। इसके अतिरिक्त सिविल सोयम ज़मीनों को और अन्य प्रतिबंधित क्षेत्रों को बिना कोई सर्वेक्षण कर और बिना लोगों के हक़ हकूकों को मान्यता देते हुए वन ज़मीन घोषित किया गया हैं।
– केंद्र सरकार का आश्वासन था कि 2022 तक देश में हर परिवार को घर मिलेगा। लेकिन उत्तराखंड राज्य में इस आश्वासन की पूर्ति अभी भी बहुत दूर की बात है। देहरादून शहर में पिछले आठ साल में सरकार सौ घर भी नहीं बना पायी है। 2016 में पिछले कांग्रेस सरकार के समय में कानून बनने के बावजूद राज्य के किसी भी शहर में मज़दूर और गरीब लोगों की बस्तियों में नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई है। उल्टा भू माफिया की सक्रियता की वजह से शहरों में घर का किराया और घरों की कीमत लगातार बढ़ोतरी पर है। इस स्थिति में गरीब और मज़दूर वर्ग को “अतिक्रमणकारी” रूप में दिखा कर इस प्रकार की सजा से डराना और धमकाना एक जन विरोधी, क्रूर कदम होगा।
– पर्वतीय क्षेत्रों के लिए वर्ष 2004 में निर्धारित बंदोबस्ती पर सरकार मौन है । जिसके कारण और चकबंदी के अभाव में पर्वतीय क्षेत्र में भूमि से संबंधित कई समस्याएं खड़ी हो गई हे।2018 में भू कानून में किए गए संशोधनों से भूमि की खरीद बिक्री पर किसी भी तरह की सीमा नहीं रह गई हे।पिछले वर्ष एक और सरकारी आदेश के माध्यम से 2 वर्ष की समय सीमा को भी समाप्त कर दिया गया हे। इन नीतियों की वजह से राज्य की सार्वजनिक संपत्तियों का लगातार हनन हो रहा है।
– इस अध्यादेश में निजी ज़मीन पर किए गए अतिक्रमण को अपराध घोषित कर कठोर सजा देना उच्चित नहीं हो सकता है। इस प्रकार के कानून का बेहद दुरूपयोग होने की सम्भावना बनती है।
– यह मुद्दा किसी भी रूप में आपातकाल नहीं है। भयंकर तबाही पूरे उत्तराखंड में इस बारिश के कारण हो रहो, लोग रोटी को तरस रहे; तो इस समय इस प्रकार के कानून को अध्यादेश द्वारा लाना नाजायज और संविधान विरोधी कदम है। सरकार अपने मसौदे को सार्वजनिक करे और जनता से इस पर पहले राय मांगे, और फिर विधान सभा में आम अधिनियम जैसे इस अध्यादेश को भी पेश किया जाये।
– “अतिक्रमण के लिए उकसाना” को अपराध घोषित करना व्यापक और अस्पष्ट क़ानूनी प्रावधान है जिसकी दुरूपयोग होने की पूरी सम्भावना है। जहाँ पर भी अफसर या सरकारी विभाग के घोषणाओं का विरोध होगा, उसको इस प्रावधान द्वारा कुचला जा सकता है। अगर कोई सही में गैर क़ानूनी साजिश कर रहे हैं, उनपर आम आपराधिक कानूनों द्वारा कार्रवाई की जा सकती है
महोदय, उत्तराखंड राज्य के दोनों पर्वतीय और तराई क्षेत्रों में दसियों लाख लोग इस अध्यादेश के प्रावधानों के अनुसार अपराधी घोषित किये जा सकते हैं। ऐसे कानून से मात्र भ्रष्टाचार और गरीब विरोधी अफसरों एवं नेताओं को बढ़ावा मिलेगा। यह अध्यादेश लोगों के क़ानूनी हक़ और हमारे संवैधानिक हक़ों के खिलाफ है।
अतः हम आपसे निवेदन करना चाहते हैं कि सर्वप्रथम तो, वर्णित तथ्यों के आलोक में प्रमुखता से उक्त अध्यादेश पर आप स्वीकृति न दे और सरकार से निवेदन करे कि वे इस अध्यादेश को पहले जनता के बीच में चर्चा हुए बगैर ऐसा कोई अध्यादेश न लाया जाए I
निवेदक
PC तिवाड़ी, अध्यक्ष, और नरेश नौडियाल, महासचिव, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी
समर भंडारी, नेशनल कौंसिल सदस्य, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
राजेंद्र नेगी, राज्य सचिव, CPI (M)
डॉ SN सचान, राष्ट्रीय सचिव, समाजवादी पार्टी
इंद्रेश मैखुरी, राज्य सचिव, CPI (ML)
कमला पंत, अध्यक्ष, उत्तराखंड महिला मंच
तरुण जोशी, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा
गंगाधर नौटियाल, महामंत्री, आल इंडिया किसान सभा
राजीव लोचन साह, अध्यक्ष, उत्तराखंड लोक वाहिनी
डॉ रवि चोपड़ा, वरिष्ठ पर्यावरणविद
भुवन पाठक, सद्भावना समिति उत्तराखंड
शंकर गोपाल, विनोद बडोनी, राजेंद्र शाह, मुकेश उनियाल, चेतना आंदोलन
अजय जोशी, रचनात्मक महिला मंच
मुकेश, मज़दूर सहयोग केंद्र