उत्तराखंडसामाजिक

ऐसे भी है लोग : गाँव का परोपकारी -चैतू

डा0 महेन्द्र पाल सिंह परमार
उत्तरकाशी। हमारे गाँव मे कयी ऐसी सखसियत है जो गांव के हर भले बुरे काम व अपने व्यक्तिगत काम मे भी इनकी  मदद मिलती है जो किसी ओर के द्वारा संभव नहीं है उनमें से हमारे गाँव का
चैतु  दीदा  हर काम के लिए उपलब्ध रहता है चाहे कोई गांव का फौजी आए चाहे गांव का कोई भी नौकरी करके आ रहा हो या गांव की कोई बेटी,बहु कहीं से आया, चैतु हमेशा उसके सामान को उनके घर तक ले  जाता है जिसके बदले   कभी कोई बढ़िया दाम  नहीं मांगे एक चाय दो रोटी ओर 10/20रुपये । चैतु  हर समय गांव में  अपने घर से न जाने कितने चक्कर मारता है चेतू हर घर बड़े बजुर्ग को पूछता क्या लाना है व क्या ले जाना है चैतु  दीदा या भाई हर घर में गेहूं,धान घराट व चक्की पिसाने ले जाता है  पिसा आटा व चावल  दुकान से सब्जी मसाला ले जाना लाना , सिलेंडर  भरवाकर  लाना , राशन की बोरी लाना यह सब काम चैतु के हैं जिसके बदले कोई मोटी रकम नहीं होती बल्कि 10 /20 रु0  एक चाय और दो रोटी  होती है| चैतू सिर्फ इतना  नहीं छोटे बालक , बालिकाएं यदि शैतानी करते हैं तो उस समय भी इसी का नाम लेकर वो मानते है या डराते हैं जब भी वो घर पर या जाए उस समय इससे से बोलकर उनको डराया।, मनायाजा सकता है अत: बाल सुधारक भी है |
मैंने जब से होश संभाला मैंने चैतू को उतना ही देखा जब मैं पांचवीं या  छट्टी में पढ़ता था उस समय उसकी शादी  हुई थी हम उस शादी में खूब नाचे ,  चैतु  हर गांव के भले बुरे जीने मरने  के  काम में हमेशा उपलब्ध रहता है ओर इसके बदले कभी किसी से किसी प्रकार की कोई रकम नहीं ली सिर्फ ₹10 और खाना ही मजदूरी है |
मै हर  रविवार (संडे) या को छुट्टी के दिन अपने गांव आता हूं तो देखता हूं चैतू हमारे माजी पिताजी के लिए आटा चावल दुकान से सब्जी  लाना सिलिन्डर लाना ले जाना यह सब चैतू  ही करता है कभी-कभी लगता है कि   मानो ये ही उनका असली बेटा हो  और उनका ही नहीं सब गाँव वालों असली  का पुत्र जैसे  है ।
भले ही वह अनपढ़ है पर उसे हमसे अच्छा ज्ञान है, वह बहुत ही समझदार है उसे पता है कि कब किसके घर सब्जी , आटा चावल ले के गया व कब खत्म हो जाएगा व गाँव के सभी बड़े बुजुर्ग उसकी राह देखते हैं व वो उसका पूरा ख्याल रखता हैं  | पिताजी अक्सर कहते हैं कि कभी चैतू बीमार हो गया तो हमे उस दिन बड़ी मुस्किल हो जाता है कोई समान मंगाना हो तो मुश्किल हो जाता है । शायद ये हाल सभी बुजुर्गों का होगा ओर यदि या  मारता है तो साथ में हम भी मर जाएंगे | मैंने अक्सर देखा है जिसने अपने पुत्र कामयाब बनाए वे आज अपने पुत्रों से दूर हैं क्योंकि पुत्र गाँव नहीं आते माँ बाप उनके साथ नहीं जाते अत: उस समय चैतू जैसे गाँव के परोपकारी बेटे ही काम आते हैं |
चैतू कई गुणों की खान है इसने  कभी भी  कोई बड़ी डिमांड किसी  के सामने रखी है  उसे तो बस  हमेशा 10/20 रुपये और चाय रोटी उसकी मजदूरी मैं पुन: चैतू भाई को सलाम करता हूँ।

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