Uncategorizedउत्तराखंड

प्रोफेसर अवतार सिंह पंवार : गांधी के जीवन पर बनाई गई कलाकृति ने उन्हें महान मूर्तिकार बना दिया था

रविंद्रनाथ टैगोर , विवेकानंद और अरविंदो की भूमि ने उन्हें प्रोत्साहित किया था ….

आजादी से पहले हो या आजादी के बाद उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के गांव में कई महान हस्तियों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने काम की बदौलत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाकर ख्याति अर्जित की थीं, जिसमें कला के क्षेत्र में प्रोफ़ेसर अवतार सिंह पंवार का नाम देश में बड़े आदर से लिया जाता है। भारत के पांच सर्वश्रेष्ठ के कलाकारों, मूर्तिकारों में उनका नाम है। प्रोफेसर पंवार आज हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनकी बनाई हुई मूर्तियां, उनकी काबिलियत की एहसास कराती है। महात्मा गांधी के जीवन पर आधारित बनाई गई उनके द्वारा कलाकृतियां उन्हें महान कलाकार बनाती है।

नरेंद्रनगर बाजार में नंदी बैल की विशाल मूर्ति हो, या कोटद्वार में तमाम शख्सियतों की मूर्तियों को प्रोफेसर अवतार सिंह पंवार ने बनाकर स्वयं को अमर कर दिया है सुदूर जखोली ब्लॉक की शख्सियतों के बारे में शोध करने पर पता चलता है कि, अंतरराष्ट्रीय स्तर का व्यक्ति धान्यों गांव में पैदा हुआ था, अवतार सिंह वैसे तो मूल रूप से पुरानी टिहरी शहर के निवासी थे , लेकिन बाद में इनके पूर्वज धान्यों गांव में बस गए थे।

महान मूर्तिकार प्रोफेसर पंवार का जन्म गांव जखोली ब्लॉक के पट्टी लस्या में धान्यों गांव में 14 जनवरी 1929 को जगत सिंह के घर में हुआ था। जखोली ब्लॉक 1997 तक टिहरी गढ़वाल जिले का हिस्सा रहा। उससे पहले टिहरी रियासत में था, रियासत के प्रथम राजा सुदर्शन शाह की 5 पत्नियां थीं, एक पत्नी के पुत्र राजा भवानी शाह हुए, जिनसे राजाओं की वंशावली आगे चली , लेकिन एक पत्नी के पुत्र हरि सिंह पंवार हुए, हरि सिंह के पुत्र ठाकुर जगत सिंह थे, जगत सिंह, राजा कीर्ति शाह के एडीसी भी रहे, जगत सिंह की शादी जखोली घनस्याण गांव के ठाकुर महिपत सिंह की लड़की से हुई थी, जिनसे प्रोफेसर पंवार का जन्म हुआ!

प्रो पंवार की कला को सबसे पहले हिंदी कला के यूपी के कला समीक्षक बैरिस्टर मुकंदीलाल ने पहचाना था और साथ ही शांतिनिकेतन में दाखिला लेने के लिए सुझाव दिया। उन्हें बंगाल में उन दिनों छात्र शिक्षक के रूप में कला भवन शांतिनिकेतन और विश्व भारती ने एक नई दृष्टि और दिशा प्रदान की। टैगोर की भूमि, विवेकानंद और अरविंदो ने उन्हें प्रोत्साहित किया तथा उनकी भावनाओं व अनुभवों से परिदृश्य को पेंट करने के लिए प्रेरित किया।

1956 में ललित मोहन सेन की मृत्यु के बाद सुधीर रंजन खास्तगीर को लखनऊ आर्ट्स कॉलेज के नए प्रिंसिपल नियुक्त किए गए, उन्होंने शांतिनिकेतन से पंवार को लखनऊ आर्ट्स कॉलेज में बुलाया , सुधीर रंजन 1958 से 1962 तक लखनऊ आर्ट्स कॉलेज के प्रिंसिपल रहे थे, प्रोफेसर पंवार ज्यादा समय लखनऊ में रहे,लखनऊ कॉलेज ऑफ आर्ट्स में 1956 से 1989 तक प्रोफेसर के पद पर कार्य किया। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रोफेसर लखनऊ कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स के पास एक छोटे से क्वार्टर में रहते थे यहां काम करने के लिए उचित स्थान नहीं था, उनके रहते बड़ी संख्या में मूर्ति आंगन में देखी जा सकती थी। प्रोफेसर पंवार की शिक्षा प्रताप इंटर कालेज टिहरी, सेंट जार्ज स्कूल मसूरी, रॉयल मिल्ट्री कालेज देहरादून, शांति निकेतन विश्वविद्यालय कलकत्ता में हुई थीं।

महात्मा गांधी के जीवन पर उनकी पेंटिंग, शहीद स्मारक जबलपुर का म्यूरल , बोकारो बांध का कार्य, राष्ट्रीय चीनी संस्थान कानपुर में स्कल्पचर म्यूरल भारत और विदेशों में महान व्यक्तियों की मिट्टी के पोर्ट्रेट आदि ने उन्हें भारत के महान मूर्तिकार में बना दिया था।बिरला हाउस नई दिल्ली में कृपाल सिंह शेखावत के अधीन महात्मा गांधी के जीवन चित्र के लिए चयनित तीन कलाकारों में एक कलाकार के रूप में प्रोफेसर पंवार ने कार्य किया। उन्होंने लखनऊ, गढ़वाल और कुमाऊं , बेंगलुरु में कई स्मारक आउटडोर उद्यान की मूर्तियां बनाई। साथ ही वह अपने छात्रों को काम पर खुद के साथ व्यस्त रहते थे।भारत के पांच सबसे बड़े कलाकार श्री डीपी राय चौधरी, श्री रामकिंकर बैज, श्री सतीश गुजराल , श्री केजी सुब्रमण्यम, के समकक्ष प्रोफेसर अवतार सिंह पंवार का नाम दर्ज है।

श्रीनगर , कश्मीर ,सहित ग्वालियर, बनारस , महाबलीपुरम , दिल्ली आदि के कला शिविर में भाग लेने के लिए प्रोफेसर पंवार को चयनित किये जाते रहे हैं। उन्होंने खुजराहो, शांति निकेतन वाराणसी , बेंगलुरु में अखिल भारतीय कलाकार संगोष्ठी में भाग लिया ।उन्हें केंद्रीय ललित कला मूर्तिकला में राष्ट्रीय विद्वानों व मार्गदर्शन करने के लिए विशेषज्ञ के रूप में चयन किया गया। पंवार ने मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, कैफी आज़मी, फैज अहमद, एनटी रामा राव , महादेवी वर्मा, सुनील गावस्कर, अमिताभ बच्चन , वीरचंद्र सिंह गढ़वाली, मुकंदी लाल बैरिस्टर, ललिता प्रसाद गैरोला, गुरु रविंद्र नाथ टैगोर सहित डेढ़ सौ से अधिक दुनिया के महानतम लोगों के चित्र बनाएं हैं।

प्रोफ़ेसर पंवार अलग-अलग कला अकादमी एवं संस्थाओं में चयनकर्ताओं जज के रूप में आमंत्रित किए जाते रहे थे जिसने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय , विश्व भारती शांतिनिकेतन, जेएल नेहरू टेक्नोलॉजी कल यूनिवर्सिटी हैदराबाद आदि शामिल हैं। उन्होंने लखनऊ के सौंदर्यीकरण के लिए सम्मान प्राप्त किया। हाथी की प्रतिमा, हाथी पार्क , भगवान बुद्ध बुद्ध पार्क, सूरजकुंड जूलॉजिकल गार्डन आदि में उनकी कलाकृतियां देखी जा सकती हैं
राष्ट्रीय पुरस्कार राष्ट्रीय ललित कला अकादमी, राष्ट्रीय ललित कला अकादमी द्वारा फेलोशिप, डी लिट की उपाधि कानपुर यूनिवर्सिटी द्वारा उन्हें दी गई। उत्तर प्रदेश में 1994 में यश भारती सम्मान उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव द्वारा उन्हें दिया गया।

लेकिन आश्चर्य है 1952 से 1990 तक उत्तर प्रदेश को 4 मुख्यमंत्रियों को देने वाला उत्तराखंड राज्य कला के क्षेत्र में महान कलाकार प्रोफेसर अवतार सिंह पंवार को पद्मश्री,पद्मभूषण, पद्मविभूषण जैसे पुरुस्कार नहीं दिला पाए। जबकि इन पुरस्कारों को 2 जनवरी 1954 से दिया जा रहा है, जिसमें कला पहले नंबर पर है। प्रोफेसर पंवार की कर्मभूमि 1956 से 1989 तक लखनऊ आर्ट कॉलेज में रही, यहीं से उन्होंने विश्व स्तर पर ख्याति पाई।

उनको मोम पर काम करना पसंद था, टेराकोटा में उनके काम एक महान क्राफ्ट्समैन शिल्प का था उन्होंने टेराकोटा और कास्ट स्टोन में अपने अधिकांश काम प्रदर्शित किए थे।।प्रोफेसर पंवार पेंटिंग के तेल , टेम्परा, वाश और चीनी स्याही का प्रयोग करते थे व मूर्तिकला में पत्थर, कांस्य , लकड़ी कास्ट स्टोन , कंक्रीट सीमेंट आदि का प्रयोग किया करते थे। बडेरगंज, बुल बुल , मुनिया, मुर्गा, तोता- मैना, आदि अन्य पक्षी और जानवर उनकी रूचि के विषय थे

प्रोफ़ेसर पंवार ने अपने जीवन में कड़ी मेहनत के पैसे से कोटद्वार गढ़वाल में कला उत्थान के लिए एक सांस्कृतिक केंद्र त्रिवेणी आश्रम बनाया था,जिसके निर्माण के लिए कोटद्वार उत्तराखंड में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली द्वारा उन्हें जमीन दान दी गई । प्रोफ़ेसर पंवार त्रिवेणी आश्रम के माध्यम से अपने सपनों को पेश करना चाहते थे, वह कहते थे कि, त्रिवेणी आश्रम एक कला केंद्र होगा जहां गरीब बच्चों को कला और शिल्प के चित्रकला मूर्तिकला और विभिन्न अन्य विधाओं को पढ़ाया जाएगा ,

वास्तव में यह स्वयं आय उत्पादन के लिए एक बड़ा प्रशिक्षण सह प्रोडक्शन सेंटर होने जा रहा था,जिससे स्थानीय शिल्प के विकास शामिल हैं। लेकिन प्रोफेसर अवतार सिंह पंवार की 73 वर्ष की आयु में 2002 में मृत्य से यह केंद्र बिखर गया , जो सपने उन्होंने उत्तराखंड के गरीब बच्चों के लिए देखे थे वह उजड़ गए , 2012 में खबर आई कि उनके परिजन त्रिवेणी आश्रम की 2 बीघा जमीन से मूर्तियां व सामान खाली करा रहे हैं , लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो पाया, आज भी प्रोफेसर पंवार की बनाई गई , देश में तमाम मूर्तियां उनकी कला को याद कराती हैं।

शीशपाल गुसाईं

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button