
देहरादून। उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनायें नई बात नहीं हैं बावजूद इसके विभाग अबतक इन घटनाओं को रोकने के लिये कोई मेकानिज्म तैयार नहीं कर पाया है। पेहले जंगलों की आग को फैलने से रोकने के लिये विभाग खाईयां खोद कर फायर लाईन का निर्माण करता था लेकन अब यह सब भ्रष्टाचार की आग में भस्म हो गया है। यहीं वजह है कि जंगलों की आग अब गांव के घर-आंगन तक पहुंचने लगी है।
हर साल गर्मी शुरू होते ही वनों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है। लेकिन साधन सुविधाओं के अभाव में वन कर्मी आग पर काबू पाने में सफल नहीं हो पाते हैं। साधन विहीन वन कर्मी आग बुझाने के लिए केवल झाड़ियों का झाड़ बनाकर आग पर काबू पाने का असफल प्रयास करते हैं। ऐसी दशा में कई बार वे खतरे की जद में आ जाते हैं। बड़े अधिकारी है कि वे आग की आड़ में अपनी कमाई का रास्ता ढूंढने में मशगूल रहते हैं। आग लगने के दिनों में पहाड़ों पर चल रही तेज हवा आग में घी का काम करती है। ऐसी दशा में निहत्थे वन कर्मियों के सामने वनों को जलते देखने के सिवा कोई चारा नहीं बचता है। सरकारों ने जंगलों में बेकार पड़े पिरुल का सदुपयोग करने की योजनाएं तो बनाई लेकिन आजतक यह योजना भी मूर्त रूप नहीं ले पाई है। पहाड़ी क्षेत्रों के लिए अभिशाप बने पिरूल से लोगों को निजात दिलाने के लिए भी आज तक कोई योजना नहीं बन पाई हैं। अपने मवेशियों को घास के लिए पूरी तरह से जंगलों पर निर्भर रहने वाले ग्रामीणों की मानसिकता है कि जंगलों में आग लगने से उन्हें अच्छा घास प्राप्त होता है। सरकारों ने ग्रामीणों की घास के लिए जंगलों पर निर्भरता खत्म करने के लिए रियायती दरों पर भूसा व हरी घास उपलब्ध कराने की योजना चलाई थी। लेकिन कारण जो भी हो लेकिन भूसा उपलब्ध कराने की योजना तो पूरी तरह फेल नजर आने लगी है। मुख्यमंत्री घस्यारी योजना में जिस तरह से घटिया माल उपलब्ध कराया जा रहा है वह भी सीमित जनपदों में इससे यह योजना भी कब घास चरने चली जाय कहा नहीं जा सकता है। फायर सीजन से पहले जगह जगह अग्नि सुरक्षा सप्ताह के तहत सेमिनारों पर लाखों रुपए फूंक दिए जाते हैं लेकिन नतीजा सिफर ही रहता है। अंग्रेजी हुकूमत के समय बनाए गए कानूनों के अनुसार वनों को आग से बचाने के के एवज में ग्रामीणों को हक हकूब के तहत इमारती लकड़ी के लिए पेड़ों का आवंटन किया जाता था। हालांकि नीति आज भी लागू है लेकिन इसका लाभ भी ऊंची पहुंच रखने वालों को ही नसीब हो पाता है। इन दिनों आग ने जंगलों में विकराल रूप धारण कर लिया है। वनों की आग घरों की देहरी तक दस्तक देने लगी है वन महकमा क्यों आग पर काबू पाने में सफल नहीं हो पा रहा यह सोचनीय विषय है गोष्ठियों में दी गई टिप्स क्यों काम नहीं आ रही है इस पर मनन करने की आवश्यकता है। कांग्रेस के प्रदेश सचिव मुकेश नेगी का कहना है जंगलों को आग से बचाना है तो चौड़ी पत्ती के जंगल विकसित करने की आवश्यकता है। इससे आग पर काबू भी पाया जाएगा और मवेशियों के लिए घास भी प्राप्त होगा।