उत्तराखंडसामाजिक

यातना व हिंसा लोकतंत्र विकास के लिए खतरा है|

वाराणसी |  बघवानाला स्थित मिर्ज़ा ग़ालिब ग्लोबल सेंटर फॉर डाईवर्सिटी एंड प्लूरलिज्म में आजादी के 75 वर्षगांठ व संविधान दिवस को पखवाड़ा के रूप में मनाने के लिए मानवाधिकार जननिगरानी समिति व सावित्री बाई फुले महिला पंचायत लोक विद्यालय, यातना मुक्त समाज के लिए बहुलतावाद क्यों  जरूरी है? विषयक संवाद का आयोजन किया गया |
इस मौके पर मानवाधिकार जननिगरानी समिति के संस्थापक सदस्य डॉ लेनिन रघुवंशी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए इस संवाद के विषय वस्तु को साझा करते हुए कहाकि, जब आप एक दूसरे पर विचार थोपना चाहते है, तो आप केवल हिंसा का सहारा लेते हैं, लेकिन जब राज्य करती है तो यातना के द्वारा करती है यातना व हिंसा लोकतंत्र व स्थायी विकास के लिए खतरा है|
हमें एक ऐसा समाज बनाना चाहिए जहाँ एक दूसरे के विचारों को आदर और सम्मान दे सकें, अहिंसात्मक बहस द्वारा उसे हल करने की कोशिश करें | इसलिए जरुरी है कि बहुलतावाद को लोगों के व्यवहार में मूल्य के तरह स्थापित हो|  इस स्थिति में नवदलित आन्दोलन की प्रासंगिकता अधिक बढ़ जाती है| सभी ‘टूटे हुए लोगों’ और प्रगतिशील लोगों, की एकता दण्डहीनता की संस्कृति व वंचितिकरण के ख़िलाफ़ लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है| उन्होंने इस मौके पर काशी के बहुलतावाद और इतिहास पर भी प्रकाश डाला|
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि देश के वरिष्ठ पत्रकार व लेखक श्री अभिषेक श्रीवास्तव ने कहाकि  इंसानी सभ्यता के इतिहास में समाज ने जितने भी सामूहिक उद्यम किए हैं, हमारी विविधता उन्हीं से पैदा हुई है। यह विविधता प्रकृति के नियमों के अनुकूल है, जो सभी को बराबर अधिकार से और अपनी जरूरत के हिसाब से जीने का अधिकार देती है। इस विविधता को नुकसान पहुंचाना प्रकृति के खिलाफ जाने जैसा है। हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम विविधता को न केवल बचाएं, बल्कि बढ़ाएं भी, और इस तरह से प्राकृतिक बहुलता को बरकरार रखने में अपना योगदान दें। जीयें और सभी को जीने दें।
इस मौके पर श्री संतोष कुमार उपाध्याय, संयोजक बंदी अधिकार आन्दोलन को देश भर में बंदियों के अधिकार के लिए काम के लिए प्रतिबद्धता और समर्पण के लिए जनमित्र सम्मान से सम्मानित किया गया|
संवाद को आगे बढ़ाते हुए युवा चिन्तक उवैस सुल्तान खान ने कहाकि, हमारी परम्परा स्वीकार्यता की रही है|  यहाँ हमसब एक दूसरे में समां गये थे इसलिए उनको अलग करना मुश्किल था|  पिछले कुछ दशक पहले विभाजनकारी नीतियों ने हमारे बुजुर्गो द्वारा सजोये गये सपनों के भारत को बहुलतावाद और विविधतता को खत्म करने की कोशिश की| अपने जैसे सब बनाना चाहते है, पर कोई अपना नहीं बनाना चाहता उन्होंने लैंगिक बराबरी पर भी जोर दिया|
श्री राजेश प्रताप सिंह, पूर्व सहायक निदेशक, गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने काशी को बहुलता की संस्कृति को साझा किया| उन्होंने कहाकि बहुलता के लिए शास्त्रर्ध जरुरी है|
इस मौके पर सावित्री बाई फुले महिला पंचायत की संयोजिका श्रुति नागवंशी ने धन्यवाद् देते हुए कहाकि विभाजनकारी और फासीवादी हमेशा से समाज के कटुता फ़ैलाने का कार्य कर रहा है| इसलिए मिर्ज़ा ग़ालिब ग्लोबल सेंटर फॉर डाईवर्सिटी एंड प्लूरलिज्म लोगों में एकजुटता और जमीनी स्तर पर संविधान लागू  करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है|
 इस मौके पर राकेश रंजन त्रिपाठी, आशीष पाण्डेय, बुनकर दस्तर अधिकार मंच के इदरीश अंसारी, मनीष शर्मा, शिरीन शबाना खान, रिंकू पाण्डेय, छाया कुमारी, राजेंद्र, अभिमन्यु, ओंकार सहित 80 से अधिक लोगों ने भागीदारी किया| इस कार्यक्रम का सचालन डॉ लेनिन रघुवंशी ने किया

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