उत्तराखंड

नेत्रदान जनजागरूकता में अभूतपूर्व उपलब्धि

एम्स, ऋषिकेश के अमूल्य मार्गदर्शन और सहयोग से उत्तराखंड में नेत्रदान जनजागरूकता तथा मानव सेवा के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की गई है। विभिन्न सामाजिक संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं एवं समाजसेवियों के सामूहिक प्रयास के परिणामस्वरूप अब तक 1174 नेत्रदाता परिवारों द्वारा कॉर्निया (नेत्र पुतली) दान किए गए, जिनसे 880 जरूरतमंद व्यक्तियों को पुनः नेत्रज्योति प्राप्त हुई है। यह उपलब्धि प्रदेश में नेत्रदान अभियान को नई दिशा और गति प्रदान कर रही है।

एम्स, ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर डॉ. मीनू सिंह ने इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सभी सहयोगी संस्थाओं और स्वयंसेवकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि जनजागरूकता बढ़ाने में समाज के विभिन्न वर्गों का योगदान अत्यंत सराहनीय है। उन्होंने अधिक से अधिक संस्थाओं और लोगों से इस पुण्य अभियान से जुड़ने का आह्वान किया, ताकि हम सब मिलकर नेत्रहीन व्यक्तियों के जीवन में उजाला ला सकें।

डॉ. मीनू सिंह ने विशेष रूप से सुप्रयास कल्याण संस्थान के डॉ. सत्या नारायण एवं डॉ. शिवम शर्मा, लायंस क्लब ऋषिकेश के गोपाल नारंग, देह दान समिति हरिद्वार के सुभाष चंद्र, मुस्कान फाउंडेशन की नेहा मालिक, तथा मारवाड़ी महिला सम्मेलन (ऋषिकेश शाखा) की नूतन अग्रवाल सहित कई संस्थाओं और समाजसेवियों के उल्लेखनीय योगदान की सराहना की।
इसके साथ ही समाजसेवी अनिल कक्कड़, संगीता आनंद (ऋषिकेश), अनिल अरोड़ा, समीर चावला, अशोक कालरा (हरिद्वार) विवेक अग्रवाल, हरदीप सिंह( देहरादून)तथा सीमा जैन (रुड़की) द्वारा नेत्रदान जागरूकता के क्षेत्र में किए गए प्रयासों को भी विशेष रूप से रेखांकित किया।

इस सफलता के पीछे एम्स ऋषिकेश के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) संजीव कुमार मित्तल,
नेत्र बैंक की डायरेक्टर डॉ. नीति गुप्ता,आई बैंक टीम का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके नेतृत्व में आई बैंक टीम ने नेत्रदान की प्रक्रिया को संवेदनशील, व्यवस्थित एवं समयबद्ध तरीके से संचालित किया, जिससे यह अभूतपूर्व उपलब्धि संभव हो सकी।

प्रो. मित्तल ने बताया कि इस उपलब्धि में उल्लेखनीय यह है कि इनमें से 32% नेत्रदान स्वैच्छिक रूप से उक्त सामाजिक संस्थानों द्वारा कराए गए, जो कि समाज में नेत्रदान महादान के प्रति बढ़ती जागरूकता और लोगों की मानवीय संवेदना का स्पष्ट प्रमाण है। उन्होंने बताया कि यह उपलब्धि किसी एक संस्था की नहीं, बल्कि सामाजिक सद्भाव और सतत जनसहभागिता का प्रेरक उदाहरण है।

880 लोगों की आंखों में पुनः रोशनी लौटना न केवल चिकित्सा विज्ञान की बड़ी सफलता है, बल्कि उन परिवारों के लिए भी अमूल्य आशा है, जो वर्षों से इस प्रकाश की प्रतीक्षा कर रहे थे।

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