चुनाव का निष्कर्ष आने से दो दिन पहले राज्य के कुछ प्रमुख आंदोलनकारियों, राजनेताओं एवं बुद्धिजीवियों ने राज्यपाल को ज्ञापन भेजते हुए चिंता व्यक्त की हैं कि भू कानून जैसे संवेदनशील मुद्दे को, लोगों की सांप्रदायिक भावनाओं से जोड़ कर दुष्प्रचार करने का प्रयास किया जा रहा है।
हस्ताक्षरकर्ताओं ने ज्ञापन द्वारा लिखा कि राज्य भर में मांग उठाई जाती रही है कि यहां एक सशक्त भू कानून बनाया जाये। 2018 के संशोधनों और वन अधिकार कानून का अमल न होने की वजह से उत्तराखंड के प्राकृतिक संसाधन भू माफिया और बड़े पूंजीपतियों के शिकार हो गए हैं।
लेकिन कुछ दिन से इस आंदोलन के साथ साथ एक और प्रयास किया जा रहा है। पूरा दुष्प्रचार चल रहा है कि पहाड़ों के लिए सबसे बड़ा खतरा एक समुदाय विशेष से आ रहा है । इन बातों को कुछ राजनैतिक दल भी बढ़ावा दे रहे हैं, ख़ास तौर वह दल जिसने 2018 में लाए गए भू कानून संशोधन द्वारा भूमि की लेनदेन पर सारे रोक हटा दिए थे। भीड़ की हिंसा के घटनाओं को ज़िक्र करते हुए हस्ताक्षरकर्ताओं ने इस बात को भी उठाया कि इस समय राज्य में लगातार डर और नफरत का माहौल खड़ा करने की कोशिश की जा रही है।
यह हमारे देश के संविधान के खिलाफ है। नफरत और हिंसा को फैलाने से आम लोगों की जान को और हमारे राज्य की सामाजिक अस्तित्व की संस्कृति, दोनों ही खतरे में आ रहे हैं। यह राज्य के लोगों के आंदोलन को, उसकी अपनी जायज मांगों से भटकाने और दबाने की कोशिश भी है। हस्ताक्षरकर्ताओं ने राज्यपाल से निवेदन किया कि जिसकी भी सरकार 10 मार्च को बनती है, राज्यपाल उनको निर्देश करें कि वे इस प्रकार का हिंसक और नफरत वाला दुष्प्रचार के खिलाफ तीव्र और सख्त कारवाई करके राज्य के लोगों के असली मुद्दों और मांगों पर नीतिगत कारवाई शुरू करें।
ज्ञापन और हस्ताक्षरकर्ताओं की सूचि संलग्न।
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सेवा में,
महामहिम राज्यपाल
उत्तराखंड सरकार
विषय: उत्तराखंड में हिमाचल व अन्य हिमालयी राज्यों की तरह ही सशक्त भू कानून न बनाए जाने से यहां की जमीनों की खुली लूट पर और लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किये जाने पर रोक लगाने के सम्बंध में I
महोदय,
पिछले कुछ समय से राज्य भर में युवाओं, महिलाओं और हर तबके के लोगों के द्वारा इस मांग को उठाया जाता रहा है कि उत्तराखंड में 2018 के जन विरोधी भू कानून को तत्काल समाप्त करने के साथ ही यहां भी एक सशक्त भू कानून बनाया जाये। जबकि अन्य सभी हिमालय राज्यों में वहां के निवासियों के हितों के मद्देनजर ,वहां की ज़मीन की खरीद फरोख्त पर रोक लगायी गया है, पर सिर्फ उत्तराखंड राज्य में UP Zamindari Abolition and Land Reforms Act का 2018 के संशोधन के बाद यहां की जमीनों की किसी के भी द्वारा कितनी ही जमीन खरीदने पर अब कोई भी रोक नहीं है। इसके साथ साथ वन अधिकार कानून, जिसके तहत गांव को अपनी वन ज़मीन और पारम्परिक वनों पर अधिकार मिलना चाहिए था, इस राज्य में उस कानून का अमल भी नहीं हुआ है। जिसकी वजह से इस राज्य के प्राकृतिक संसाधन भू माफिया और बड़े पूंजीपतियों के शिकार हो गए हैं। इसलिए राज्य भर में लोग इन मुद्दों को ले कर आवाज़ उठा रहे हैं।
लेकिन कुछ दिन से इस आंदोलन के साथ साथ एक और प्रयास दिखाई दे रहा है । 2018 के संशोधन से फायदा उठा कर, यहां की जमीनों की बढ़ती जा रही लूट के साथ ही साथ लोगों का ध्यान इस मुद्दे से व उनकी जायज चिंताओं से हटाने के लिए पूरा दुष्प्रचार चल रहा है कि पहाड़ों के लिए सबसे बड़ा खतरा एक समुदाय विशेष से आ रहा है । यह दुखद है कि राज्य में पलायन और संसाधनों की लूट का विषय पूरी तरह से धर्म से जोड़ा जा रहा है। इन बातों को कुछ राजनैतिक दल भी बढ़ावा दे रहे हैं, ख़ास तौर वह दल जिसने 2018 में लाए गए भू कानून संशोधन द्वारा भूमि की लेनदेन पर सारे रोक हटा दिए थे।
हम आपके संज्ञान में इस बात को भी लाना चाह रहे हैं कि इस समय राज्य में लगातार डर और नफरत का माहौल खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। करोड़ों खर्च कर सरकार समर्थक सोशल मीडिया व अन्य मीडिया द्वारा गलत और झूठी खबरें फैलाई जा रही हैं। बहुसंख्यक समुदाय के बीच डर को फैलाया जा रहा है। इस बीच पिछले पांच सालों में उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार भीड़ की हिंसा की घटनाएं और दंगा फैलाने के प्रयास लगातार तेज होते दिखाई दे रहे हैँ । 2017 और 2018 में सतपुली, मसूरी, आराघर, कीर्तिनगर, हरिद्वार, रायवाला, कोटद्वार, चम्बा, अगस्त्यमुनि, डोईवाला, घनसाली, रामनगर और अन्य जगहों में ऐसी घटनाएं हुई थी । 2021 में रूड़की और नैनीताल में भी ऐसी घटनाएं हुई । लेकिन अधिकाँश ऐसी घटनाओं के बाद भी हिंसा करने वाले संगठनों व व्यक्तियों पर कोई सख्त कारवाई नहीं की गयी है, यहाँ तक की ऐसी कुछ घटनाएं के बाद, ऐसे किसी अपराधी को गिरफ्तार भी नहीं किया गया है।
इस सन्दर्भ में भू कानून जैसे संवेदनशील मुद्दे को, लोगों की सांप्रदायिक भावनाओं से जोड़ कर जो दुष्प्रचार करने का प्रयास किया जा रहा वह हमारे देश के संविधान के खिलाफ है। नफरत और हिंसा को फैलाने से आम लोगों की जान को और हमारे राज्य की सामाजिक सह अस्तित्व की संस्कृति, दोनों ही खतरे में आ रहे हैं। यह राज्य के लोगों के आंदोलन को, उसकी अपनी जायज मांगों से भटकाने और दबाने की कोशिश भी है।
आप राज्य में संविधान के संरक्षक है। अतः इसलिए हम आपसे निवेदन करते हैं कि जिसकी भी सरकार 10 मार्च को बनती है, आप उनको निर्देश करें कि वे इस प्रकार का हिंसक और नफरत वाला दुष्प्रचार के खिलाफ तीव्र और सख्त कारवाई करके राज्य के लोगों के असली मुद्दों और मांगों पर नीतिगत कारवाई शुरू करें।
हम माँग करते हैं कि–
* 2018 के जनविरोधी भू कानून को निरस्त किया जाए I
* राज्य के निवासियों के हितों को जो संरक्षण दे ,ऐसा राज्य का अपना एक सशक्त भू कानून बनाया जाए I
* वन अधिकार कानून 2006 को राज्य में कड़ाई से लागू किया जाए I
* भू कानून की बात को संप्रदाय विशेष के खिलाफ दुष्प्रचार का षडयंत्र करके राज्य में साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने की जो कोशिश की जा रही है उस पर कड़ाई से प्रभावी नियंत्रण किया जाए I
निवेदक,
सुभाष पंत, वरिष्ठ लेखक
राजीव लोचन साह, उत्तराखंड लोक वाहिनी
कमला पंत और गीता गैरोला, उत्तराखंड महिला मंच
PC तिवाड़ी, अध्यक्ष, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी
SS पांगती (IAS retd)
PC थपलियाल, उत्तराखंड लोकतान्त्रिक मोर्चा
शंकर गोपाल और विनोद बडोनी, चेतना आंदोलन
समर भंडारी, राज्य सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
इंद्रेश मैखुरी, गढ़वाल सचिव, भारत का कम्युनिस्ट पार्टी (मा – ले)
सतीश धौलखंडी, जन संवाद समिति उत्तराखंड
तरुण जोशी, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा
अशोक शर्मा, राज्य सचिव, AITUC उत्तराखंड
इस्लाम हुसैन और साहिब सिंह सजवाण, सर्वोदय मंडल
उमा भट्ट, भारत ज्ञान विज्ञानं समिति
नागेंद्र नौडियाल, नागरिक कल्याण मंच, पौड़ी
भार्गव चंदोला, सामाजिक कार्यकर्ता
सोनिया नौटियाल गैरोला, सामाजिक कार्यकर्ता
आशु वर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता
अवनीश कुमार,सामाजिक कार्यकर्ता
सुनील रावत, सामाजिक कार्यकर्ता
मीनू जैन, सामाजिक कार्यकर्ता
प्रीती थपलियाल, सामाजिक कार्यकर्ता