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झील में पानी सूखते ही होने लगती है बारिश

रुद्रप्रयाग। नैना झील में पानी सूखते ही बारिश होने लगती है। और फिर यह झील पानी से लबालब हो जाती है। उत्तराखंड के रुप्रदप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि विकासखंड के बच्छणस्यूं और धनपुर पट्टी को जोडऩे वाली नैना झील, पर्यटन, तीर्थाटन और एडवेंचर को न्यौता दे रही है। प्रकृति की गोद में बुग्याल व छोटी पहाडिय़ों के मध्य में झील का आकर्षण देखते ही बनता है।

बच्छणस्यूं पट्टी के डुंगरा गांव से दो किमी की खड़ी चढ़ाई पार कर नैना झील के दर्शन होते हैं। तीन तरफ से छोटी-छोटी पहाडिय़ों के बीच में काफी बड़े क्षेत्र में फैले बुग्याल के बीच प्राकृतिक झील है। लगभग 20 मीटर लंबी व 10 मीटर चौड़ी इस झील में वर्षभर पानी रहता है। ग्रीष्मकाल में पानी कम हो जाता है। लेकिन इन दिनों झील लबालब है। यहां से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के साक्षात दर्शन होते हैं। साथ ही जिला मुख्यालय पौड़ी का नजारा आंखों के सामने होता है।

यह क्षेत्र बच्छणस्यूं और धनपुर पट्टी के मध्य में स्थित है, जिससे इसे दोनों पट्टियों के आसपास के गांवों का धार्मिक स्थल भी माना जाता है। साथ ही यहां के गांवों के पालसी अपने मवेशियों को लेकर चौमास में यहां प्रवास करते हैं। यही नहीं, क्षेत्र में होने वाले सार्वजनिक धार्मिक अनुष्ठान के दौरान नैना देवी की विशेष पूजा की जाती है। लोक संस्कृति के जानकार व शिक्षाविद् डा. प्रकाश चमोली, वन पंचायत सरपंच भरत सिंह पटवाल, युवा अमित रावत आदि का कहना है कि नैना झील को प्रकृति ने स्वयं स्थापित किया है। झील में जैसे ही पानी सूखने के कगार पर पहुंच जाता है, बारिश होने लगती है।

मनरेगा में किया गया झील का संरक्षण
रुद्रप्रयाग। विकास विभाग द्वारा बीते वर्ष मनरेगा योजना में स्थानीय ग्रामीणों की मदद से नैला झील के संरक्षण के लिए जमा गाद की सफाई की गई। साथ ही जंगली जानवर या अन्य कोई झील को नुकसान न पहुंचाए, इसके लिए गोलाई में चारों तरफ से दो फीट ऊंची व एक फीट चौड़ी सुरक्षा दीवार का निर्माण किया गया है। झील के माध्यम से बरसाती पानी के संरक्षण के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। आने वाले समय में झील के क्षेत्र को भी बढ़ाया जाएगा।

जिला पर्यटन एवं सहासिक खेल अधिकारी सुशील नौटियाल का कहना है कि नैना झील को पर्यटन, तीर्थाटन व एडवेंचर के रूप में विकसित करते हुए जिले के प्रमुख स्थलों में शामिल किया जाएगा। झील तक पहुंच के लिए बच्छणस्यूं व धनपुर से दो अलग-अलग ट्रेकिंग रूट विकसित किए जाएंगे।

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