हम हारे नहीं——
यूक्रेन-रूस के बीच चल रहा युद्ध थमा नहीं है। इस बीच कई शहर तबाह हो गये हैं कई जिंदगियां बेसांस हो गयी है। दोनो तरफ नुकसान ही नुकसान हो रहा है, बावजूद इसके कहीं कोई ठहराव की पहल नहीं दिखती। युद्ध के 101 दिन पूरे होने पर प्रस्तुत है यूक्रेन के लड़कों कों समर्पित रमेश कुडियाल की यह कविता :-
युद्ध में हारे जाते हैं
कुछ चेहरे
हसते खेलते शहर
खिलखिलाती फसलें
युद्ध में जीती जाती है
रोती चीखती आवाजे
मुर्दा पड़े लोग
जमीन पर जमीन हो गए शहर
जीत के बाद भी हाथ लगता है
केवल श्मशान
डरावना और भयावभुतहा शहर..
अखिर क्या जीते
कुछ लड़ते हुए जिंदा लोगों की लाशों
मस्तक ऊंची की हुई कुछ इमारतों के
भ्नावशेष
जो कहते हैं
हम हारे नहीं
कतई नहीं हारे
हम तो मारे गए
हम तो ढाहाए गए
हम जब तक जिंदा रहे
तब तक लड़ते रहे
देखो हमने हथियार नहीं डाले तुम्हारे आगे
हमारे मृत शरीरों के हाथों को देखो
वह आज भी बंदूकें थामे हुए हैं
और तुम हमारे मृत शरीरों के सामने
आने से भी घबराये हुए हैं
तुम हत्यारे हो
केवल हत्यारे
तुम युद्ध में जते नहीं हो
क्योंकि हमने तुम्हारे आगे
हथियार नहीं डाले
पीठ भी नहीं दिखाई
हम जिंदा होने तक लड़ते रह
अपने देश की खातिर
उसे बचने के लिये
हमें मारकर
और हमारे शहरों को तबाह कर
तुम्हारे हाथ कछ भी जिंदा नहीं लगा
तुम केवल लाशों और
श्मशान हो गए शहरों के विजेता हो
लेकिन
इतिहास
हमें भी याद रखेगा कि
हमने तुम्हें जीते जी जीतने नहीं दिया