
देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति में बहुगुणा परिवार की हमेशा से उपस्थिति रही है। बात चाहे हेमवतीनंदन बहुगुणा की हो या अब विजय बहुगुणा की। बहुगुणा परिवार हवा के रुख को मोड़ने में माहिर रहा है।
हेमवतीनंदन बहुगुणा चाहे जिस भी दल में रहे हों, यहां की जनता हमेशा उनके साथ खड़ी रही। उत्तराखंड बनने के बाद उनके बेटे विजय बहुगुणा को भी जनता का आशीर्वाद मिलता रहा। पिछली बार हरीश रावत सरकार में उनके इशारे पर ही बगावत हुई थी। और कांग्रेस के दस विधायकपार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे। कांग्रेस से आए सभी दस विधायकों को भाजपा ने टिकट भी दिया। बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा भी उस लहर में विधायक बन गए। बावजूद इसके स्वयं विजय बहुगुणा हाशिये पर खिसकते गए। स्थितियह है कि चुनाव सिर पर हैं ,लेकिन विजय बहुगुणा भाजपा की मुख्यधारा में कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।
पहले कांग्रेस से टिहरी से सांसद रहे विजय बहुगुणा बाद में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। करीब आधा कार्यकाल भी हुआ पूरा नहीं कर पाए कि हरीश रावत सीएम की कुर्सी पर काबिज हो गए। यह बात बहुगुणा को भीतर तक नागवार गुजरी। हरीश रावत सरकार को घेरने का तब उन्होंने कोई मौका नहीं गंवाया। आखिरकार बहुगुणा ने ऐसा वातावरण बना दिया कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस से बगावत कर दस विधायक भाजपा में शामिल हो गए। इससे भाजपा को ओर ताकत मिली। भाजपा ने बहुगुणा को छोड़कर सभी को टिकट दिया और सभी ने जीत हासिल की। बहुगुणा के लिएसंतोष की बातयह भी कि उनके बेटे सौरभ को टिकट मिल गया और वह जीत भी गए।
संभावना जताई जा रही थी कि विजय बहुगुणा को लोकसभा का टिकट मिलेगा। लेकिन भाजपा ने राज परिवार की राज्यलक्ष्मी शाह पर ही भरोसा जताया। वह पहले भी सांसद रही और फिर चुनी गई। तब बहुगुणा के राज्यसभा सांसद बनने की बात कही जा रही थी, लेकिनऐन मौके पर नरेश बंसल की ताजपोशी हो गई। बस विजयबहुगुणा मुख्यधारा से हाशिये पर खिसकतेचले गए। उन्हें राज्पाल भी नहीं बनाया गया। अब जब विधानसभाचुनाव की तैयारियां चल रही हैं और नेतापहाड़ों में घूमने लगे हैं, तब बहुगुणा का न दिखना चकित करता है। माना जा रहा है कि वह कांग्रेस में हीहोते तोपार्टी का बड़ा चेहरा होते, लेकिन भाजपा को तो जैसे उनकी जरूरत ही नहीं है। ऐसे में बहुगुणा के समर्थकों में भी गुस्सा है।
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