पुराविद व इतिहासकार डॉ यशवंत सिंह कटोच की आने वाली कृति यशोधारा बनेगी उत्तराखंड की धरोहर

देहरादून : आजादी से पहले आजादी के बाद पौड़ी के विभिन्न लोगों ने अपने अपने क्षेत्रों में नीचे उतर कर मैदानों में संघर्ष कर बड़ा नाम कमाया। लेकिन अभी भी पौड़ी में कुछ ऐसे लोग हैं जो बड़ी शख्सियत रखते हैं उन्हें वहां की जलवायु, ताजी हवा हर दिन नया लिखने के लिए प्रेरित करती है ऐसी ही शख्सियत हैं डॉ यशवंत सिंह कटोच!
उत्तराखंड के प्रसिद्ध पुराविद व इतिहासकार डॉ यशवंत सिंह कटोच की नई कृति *यशोधारा लगभग तैयार हो गई है, शीघ्र ही यहां पाठकों के हाथों में होगी इस ग्रंथ में इतिहास, पुरातत्व, भाषा, धर्म पर लिखे डॉ कटोच के श्रेष्ठ निबंधों का संग्रह है तथा नवीनतम शोधों का समावेश तथा तथ्यों की प्रमाणिकता उनकी विशिष्टता रही हैं।
निबंध लेखन गद्य रचना को कहते हैं जिस में हम किसी भी विषय का वर्णन करते हैं। डॉ कटोच कि इसमें स्वतंत्र निबंध हैं, इनमें प्रारंभ, मध्य और उत्साह शामिल हैं। तथा अलग-अलग समय के इतिहास के नए ताम्रपत्रों की खोज इसमें संलग्न की गई हैं। गढ़वाली भाषा की विशेषताओं व ज्वलन्त समस्याओं पर विचारात्मक लेख हैं।
धर्म में डॉ कटोच ने उत्तराखंड में शक्ति पूजा का विशेष रूप से जिक्र किया है। उत्तराखंड के बड़े वाले इतिहासकार डॉ यशवंत सिंह कटोच पुस्तक कृति लिखने से पहले उन जगहों का दौरा करते हैं शोध करते हैं उसके उपरांत उस पर निबंध लिखते हैं। उदाहरण के लिए कण्वाश्रम पर उन्होंने 20 साल पहले एक लेख लिखा था, वह उन्हें अधूरा लगा, फिर वह कण्वाश्रम के जंगल में गए, वहां शोध करने के बाद क्या पुरातत्व है ?
क्या-क्या अवशेष मिल रहे हैं ? जंगलों में कई दिनों तक आने-जाने का क्रम के बाद कण्वाश्रम पर उन्होंने इस कृति में प्रमुखता से जगह दी है। वैसे ही उन्होंने कई बार जौनसार में महासू देवता का दौरा किया और जौनसार और महासू देवता को इसमें शामिल किया। उन्होंने अल्मोड़ा, भीमताल ,जागेश्वर, कटारमल, बैजनाथ सहित अन्य उत्तराखंड की प्रमुख जगहों पर 10 साल से अधिक समय इस पुस्तक को लिखने के लिए लगाया।
यह उनकी दसवीं बहुत ही चर्चित और ऐतिहासिक पुस्तक होंगी। उनकी पूर्व में उत्तराखंड का नवीनतम इतिहास तीन संस्करणों के साथ मार्केट में उपलब्ध है। डॉ कटोच को उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में बतौर इतिहास के विशेषज्ञ और जानकार के रूप में बुलाया जाता है उनकी किताबों में बहुत अधिक प्रमाणिकता होती है। उनके लिखे हुए इतिहास और पुरातत्व के फैक्टस को लोग कोड करते हैं तथा विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए उन्हें पढ़ा जाता है।
1970 से 81 तक प्रतिष्ठित प्रताप इंटर कॉलेज टिहरी में राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता रहे। उसके बाद कई इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्य दायित्व उन्होंने निभाया। 30, 32 साल पहले रिटायर होने के बाद वह निरंतर लेखन कार्य में जुट गए।एटकिंसन से हिमालयन गजेटयर में जो गढ़वाल और कुमाऊं का इतिहास लिखना छूट गया होगा, मलतब माइक्रो लेबल का उसकी भरपाई लिखकर डॉ कटोच ने पूरी की है।
उन्होंने इतिहास और पुरातत्व पर नवीनतम शोधों का समावेश और तथ्यों की प्रमाणिकता आदि पर विद्यार्थियों, शोधार्थियों प्रोफेसरों के लिए पुस्तकें लिखी हैं। वह इन दिनों पौड़ी मुख्यालय अपने निवास में हैं, 15 दिन पौड़ी और 15 दिन गांव नयार घाटी में चौन्दकोट में रहते हैं। नयार घाटी इन दिनों गर्म है इसलिए उनका पौड़ी घर में रुकना में ज्यादा हो गया। पौड़ी में आजकल बहुत ही अच्छा मौसम है।
तीन चार माह में उन से टेलीफोन पर वार्ता हो जाती है। जब उनका मोबाइल फोन नहीं लगता, तब चिंता सी होने लगती हैं। वह गांव का जीवन जीने वाले एक महान इतिहासकार हैं, तथा उस मिट्टी से पनपे जीवन के लेखन में पुरातत्व ढाल देने वाले एक 89 साल की उम्र में भी एक जवान लेखक दिखाई देते हैं।
उनका व्यापक सामाजिक अनुभव व वर्तमान पीढ़ी के काम आ रहा है तथा पुरातत्व और इतिहास पर लेखन लोगों के जीवन की विलक्षणताओ के प्रति जागरूक बनाता है। कुछ माह बाद कटोच जी 89 साल पूरे कर लेंगे। ईश्वर उनको स्वस्थ रखें और वह दीर्घायु हो और हमारे लिए वह इसी तरह तथ्यात्मक प्रमाणिक पुस्तके लिखें। हम उनके ऋणी रहेंगे।