उत्तराखंड

स्वर्गीय ज्ञानानन्द भट्ट का कृषि के क्षेत्र में रहा योगदान अनुकरणीय

स्वर्गीय ज्ञानानन्द भट्ट का जन्म टिहरी गढ़वाल के ब्लॉक कीर्तिनगर पट्टी बडियार गढ़ के थापली नामक ग्राम में साधारण परिवार में हुआ था। इनकी माता जी नाम संपत्ति देवी व पिताजी का नाम गोवर्धन प्रसाद भट्ट था कर्मठता के गुण इन्हें जन्मजात प्राप्त थे ।

परिवार में सबसे बड़े होने की वजह से व गांव में आगे बढ़ने की संभावनाओं के अभाव को देखते हुए इन्होंने पलायन करने की सोची गणित में अच्छी पकड़ होने के साथ साथ कुशाग्र बुद्धि के धनी ज्ञानानन्द पांचवीं पास के बाद एक बकरी बेच कर छोटी सी उम्र में घर से भाग कर मसूरी चले गए तथा सफलता प्राप्त होने तक गांव वापस न लौटने की ठान कर मसूरी देहरादून में छोटे मोटे काम करते हुए इन्होंने जीवकोपार्जन के साथ साथ भूमिगत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को खाना व चिट्ठियां पहुंचाने का काम भी किया व प्रजामण्डल के साधारण सिपाही के तौर पर कार्य किया ।

छोट होने के कारण इन पर किसी को शक भी नहीं होता था और ये निर्बाध रूप से अपने कार्य को संपन्न करते । जेल न जाने की वजह से इनके नाम का कहीं उल्लेख नहीं हुआ । अमर शहीद श्रीदेव सुमन , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय सत्य प्रसाद रतूड़ी जी के कार्यों से ये बहुत प्रभावित थे तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व राम चंद्र उनियाल , नत्था सिंह कश्यप इनके मित्रों में शामिल थे।

इन्होंने कभी भी ये प्रयास नहीं किया कि इनका नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की सूची में जुड़े क्योंकि ये निस्वार्थ सेवा में विश्वास रखते थे, इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये था कि ये कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता , ए .सी. सी. के सदस्य के साथ साथ श्री बद्रीनाथ केदार नाथ मंदिर समिति के सदस्य भी रहे व कोषाध्यक्ष होते हुए तथा तत्कालीन कांग्रेस के बड़े नेताओं जैसे स्व० इंदिरा गांधी, नारायण दत्त तिवारी , ठाकुर किशन सिंह,ब्रह्मदत्त, भूदेव लखेड़ा तथा हीर सिंह विष्ट आदि से निकटता होने के बावजूद इनके मन में अलग उत्तराखंड राज्य का सपना था जिसके कारण इन्होंने बिना स्वार्थ के उत्तराखंड क्रांति दल के अगुवा स्व० इंद्र मणि बडोनी तथा दिवाकर भट्ट आदि नेताओं को ताउम्र नैतिक व आर्थिक समर्थन देते रहे। पढ़ाई में रुचि होने की वजह से इन्होंने पंजाब से अध्ययन रखा ।

इनके साहित्यिक व पत्रकार मित्रों में चारु चंद्र चंदोला, जीत जरधारी, डॉ गोविंद चातक आदि थे। देहरादून के पश्चात इन्होंने अपनी छोटी मोटी बचत के साथ पुरोला के महर गांव में व्यापार प्रारंभ किया धीरे धीरे इन्होंने घी का व्यापार शुरू किया अचानक एक खच्चर घी के कनस्तरों के साथ खाई में गिरने के कारण इनको बहुत दुख हुआ और उन्होंने ये व्यवसाय छोड़ कर ठेकेदारी शुरू की आज भी उत्तरकाशी के पुराने लोग उनके किए काम को याद करते हैं। गंगोरी पॉवर हाउस की नहर बनाते समय धरासू तक गाड़ी आने की वजह से सुबह गंगोरी से पैदल चल कर खच्चरों पर सीमेंट लदवाकर शाम को लगभग 70 किलोमीटर पैदल चल कर गंगोरी पहुंचते थे।

सक्रिय राजनीति से जुड़ने के साथ साथ इन्होंने सामाजिक कार्यों ‌में बढ़ चढ़ कर भागीदारी निभाते हुए कई आंदोलनों में अग्रणीय भूमिका निभाई तथा निर्बल वर्ग के पक्ष में हमेशा खड़े रहे , इसी खूबी के कारण ये इंटेक के अध्यक्ष रहे और मज़दूरों के हक के लिए हमेशा लड़ते रहे। उत्तरकाशी जिला सहकारी बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के सदस्य के साथ साथ उत्तरकाशी जिले के पहले उद्योगपति होने का गौरव भी इन्हें प्राप्त है । इन्होंने हिमालयन शटल एवम‌् बौविन उद्योग की स्थापना की।

कृषि के क्षेत्र में भी इनका योगदान अनुकरणीय है । रैथल गांव जो आज पर्यटन ग्राम व बागवानी के लिए प्रसिद्ध है में पहले सेब का बगीचे लगाने वालों में इनका नाम भी शामिल है हर प्रगतिवादी विचार के साथ ये हमेशा अडिग खड़े रहे ।

उत्तराखंड आंदोलन में उत्तरकाशी जनपद के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने जेल भरो आंदोलन में सबसे पहले गिरफ़्तारी दी । सात दिन से अधिक नैनी जेल में बिताने के बाद जब उत्तराखंड राज्य बन गया तो पक्षघात के कारण बिस्तर पर लेटे होने पर भी सरकार से कभी मदद की गुहार नहीं की और सन 2005 में सदा के लिए अपने उत्तराखंड और परिवार को छोड़ कर वैकुंठ वासी हो गए ।

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