भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान के तत्वाधान में आज हिमांचल की तर्ज़ पर हों भू-क़ानून को लेकर कई सहयोगी संगठनों ने मिलकर विधानसभा कूच किया.. जिसकी शुरुआत नेहरू कॉलोनी में स्थित पोलू शहीद स्मारक एकत्रित होकर की गयी.. स्मारक में विधानसभा कूच को लेकर पहले विचार व मंत्रणा की गयी की कैसे कूच करना हैं.. क़ानून का सम्मान करते हुए रैली को व्यवस्थित तरीक़े से विधानसभा की ओर भू-क़ानून के रणभेदी नारों के साथ कूच कराया गया.. “आज दो अभी दो.. हिमांचल की तर्ज़ पर भू-क़ानून दो” उत्तराखंड मांगे भू-क़ानून.. कैसा हों भू-क़ानून हिमांचल जैसा हों भू-क़ानून के प्रमुख नारे के साथ विधानसभा सभा की पटल तक नारों की गुंज सुनाई दे ऐसा सभी आंदोलनकारियों में इस चिलचिलाती धूप में जोश विद्यमान था.. जैसे ही विधानसभा की वैरिकेटिंग के सामने रैली पहुंची तो भारी पुलिस बल को देखकर भू-क़ानून की मांगकर्ताओं में और जोश भर गया.. बैरिकेटिंग को मांगकर्ता तोड़ने ही वाले थे की विधानसभा पटल से संदेश आया की आपके मांगरूपी ज्ञापन को ससम्मान पटल तक तुरंत पहुँचा दिया जायेगा.. और उस पर गहनता से सदन पटल पर चर्चा भी की जायेगी.. ऐसा सुनकर आंदोलित भीड़ को थोड़ा ख़ुशी हुई.. वैसे भी अभियान के सभी सदस्य जानते थे की उनकी यह मांग पहले ही नंबर एक पर हैं.. क्योंकि अभियान के संस्थापक व मुख्यसंयोजक के पास संभावित मुद्दों की चर्चा का मसौदा पहले ही प्राप्त था.. विधानसभा की पटल पर भू-क़ानून पुरजोर चर्चा का आश्वासन मिलने पर ही अनशनकारी शांत हुए और अपने ज्ञापन को देकर लोकतान्त्रिक तरीक़े से माह के अंत तक समिति की रिपोर्ट को सच में सौंप दिए जाने का पुख्ता वादे मिलने के बाद बैरिकेटिंग के सामने से उठे..
इस कूच रैली में विभिन्न संगठनों के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ सैकड़ो स्वस्फूर्त भीड़ ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया जिसमें… अशोक नेगी, आनंद सिंह रावत, संदीप खत्री, नरेश कुलाश्री, आचार्य प्रकाश पंत, सुलोचना भट्ट, धना वाल्दिया, राधा तिवारी, कृष्णा बिज्लवाण, सुषमा कुकरेती, उषा कोठारी, गौरी रौतेला, रामप्यारी ईष्टवाल, कमला उप्रेती, कमला नेगी, सुभागा फर्शवाण, गीता बाग़ड़ी, राजेश पेटवाल, संदीप धनई, अनिरुद्ध डोबरियाल सहित आदि अनेक लोगों ने हिस्सा लिया…
*ज्ञापन जो प्रेषित किया गया*
सेवा में
श्री पुष्कर सिंह धामी
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तराखंड सरकार
देहरादून
द्वारा- राजस्व सचिव/अध्यक्ष महोदय भू-क़ानून समिति देहरादून उत्तराखंड
विषय- राज्यात्मा की एकमात्र आवाज़ हैं भू-क़ानून.. हिमांचल की तर्ज़ पर हों भू-क़ानून.. प्रश्नों सहित सुझाव…
महोदय..
निवेदन सहित सम्मानित समिति को अवगत कराना अभियान का राज्य कर्तव्य हैं.. की भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान उत्तराखंड पिछले कई सालों से लगातार राज्य में हिमांचल की तर्ज़ पर हों भू-क़ानून को लेकर जनजागरण करते आया हैं.. राज्य के 24 लाख परिवारों के दहलीज तक इस आवाज़ को पहुंचाने में अभियान का अहम रोल रहा हैं.. आज राज्य के वायुमंडल में जो भू-क़ानून की अनुगूंज सुनाई दे रही हैं इसके पिछे अभियान की सेमिनार परिचर्चा मैराथन व साईकिल यात्रा सहित लगातार सोशियल मीडिया तथा यू-ट्यूब चैनल भू-टी वी का अथक परिश्रम रहा हैं.. वर्तमान सरकार के सभी मुख्यमंत्रियों को कई दौर की वार्ताओं सहित ज्ञापन प्रेषित किया गया हैं.. तत्पश्चात राज्य के सभी धामों सहित प्रसिद्ध लोक देवी देवताओं के श्रीचरणों में अर्जी अर्पित करते हुए राज्य में दो हज़ार किलोमीटर की यात्रा करते हुए अभियान ने जनजागरण को गतिमान रखा हैं.. वर्तमान में अभियान 18 अक्टूबर 2021 से अनसनरत हैं…
सम्मानित समिति से अभियान निम्नलिखित बिंदुओं पर इंगित प्रश्नों का राज्यभावना के अनुरूप उत्तर चाहते हुए ध्यानाकर्षण करना चाहता हैं…
1.. क्या किसी पृथक राज्य को अपने भू-क़ानून मागने का हक़ नहीं हैं..?
2.. ऐसा क्या कारण रहें हैं की 21 साल बाद भी अभी तक उत्तराखंड राज्य का अपना भू-क़ानून (भू-अधिनियम) नहीं बन पाया हैं..?
3.. ज़ब हम 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से पृथक हों गये थे तो अभी तक upzla 1950 का धारा 154 ही यहाँ क्यों लागू किया गया हैं..?
4.. Upzla 1950 की धारा 154 की कई उपधाराओं में लगातार संसोधन कर यहाँ भूमि विक्रय क़ानून को शिथिल किया गया..?
5.. ऐसे क्या कारण थे की राज्य गठन से लेकर 2018 तक यहाँ केवल भू-अध्यादेश से ही भूमी खरीद फरोख्त का काम किया गया..?
6.. राज्य गठन के समय उत्तराखंड की क़ृषि योग्य भूमि का कुल रकबा 7.70 लाख हैक्टियर था इन 21 सालों में 1.20 लाख हैक्टियर भूमि आख़िर कैसे और किन नियमों के तहत बिक गयी..?
7.. गठन से लेकर अभी तक कितनी जमीनों को राज्य सरकार विभिन्न कंपनियों, निकायों या संस्थाओ को किस प्रयोजनार्थ अधिग्रहण करने की राज्याज्ञा दी गयी हैं.. क्या इसका विवरण आजतक सरकारों ने जनहित विज्ञापित करवाया हैं..?
8.. जिस प्रयोजानार्थ जमीनों को ख़रीदने या आवंटन की राज्याज्ञा दी गयी थी क्या शासनादेशानुसार उन जमीनों में वहीं प्रयोजन निहित हुए हैं.. या उनकी प्रकृति बदलदर उनकी प्लॉटिंग करके राज्य के भोलेभाले लोगों को ही बेच दी गयी हैं..?
9.. यदि ऐसा किया गया हैं तो शासन व सरकार ने कितने ऐसी कंपनियों से ज़मीन वापस राज्य सरकार में निहित करवाई हैं..
10.. ऐसा कृत्य राज्य गठन से लगातार होते आ रहा हैं की जमीनों को शासनादेश के विपरीत जाकर प्लॉटिंग करके लगातार बेचा जा रहा हैं.. क्या ऐसा कोई मामला समिति के संज्ञान में लाया गया हैं..?
11.. आख़िर क्या वजह हैं की आज सम्पूर्ण उत्तराखंड में
हिमांचल की तर्ज़ पर हों भू-क़ानून.. की मांग का एक प्रचंड वेग गुंजायमान हों रहा हैं.. इसके पिछे लगातार जमीनों उपरोक्त खेल हों रहा हैं…
सम्मानित समिति 2004 में एक अध्यादेश में 500 वर्ग मीटर प्रति परिवार.. और 2007 में 250 वर्ग मीटर प्रतिव्यक्ति को ख़रीदने देने की पिछे का क्या रहस्य था आज तक उत्तराखंड की जनता को इसका भी स्पस्टीकरण किसी शासन व सरकार नहीं दिया..
नार्थ ईस्ट (नेफा) सहित हिमांचल राज्य को ज़ब ये अधिकार हैं की वो अपना एक विशेष भू-क़ानून बना सकते हैं और अपने राज्य को सुरक्षित व संरक्षित रख सकते हैं.. तो उत्तराखंड राज्य को ऐसा अधिकार से वंचित रखने का क्या अभिप्राय हैं..? जबकी ये राज्य दो देशों के सीमाओं से घिरा हैं.. सुरक्षा के दृष्टिकोण सहित पर्यावरणीय व परास्थितिकीय दृष्टिकोण से भी यह राज्य देश की सुरक्षा के लिए भी अतिमहत्वपूर्ण हैं…
2018 में त्रिवेंद्र जी की सरकार ने आखिर किसके दबाव में ऐसा निर्णय लिया..? की पूरे राज्य को तस्तरी में रखकर बेचा जा सके और जो भी बाहरी व्यक्ति या कंपनी चाहे वो सही हों या फ़र्ज़ी जितनी मर्ज़ी उतनी ज़मीन खरीद लें…
2018 के भूमी संसोधन बिल से पूरे राज्य में उबाल व्याप्त हैं.. इस बिल को तत्काल प्रभाव से वापस लेते हुए.. राज्य की मूलभावना के आधार पर यानी हिमांचल की तर्ज़ पर हों भू-क़ानून.. को तुरंत लागू किया जाय… तभी पंडित दीनदयाल उपाध्याय जनता पार्क में अनसन मातृशक्ति सहित पूरा उत्तराखंड का अामजनमानस को पूर्ण सकून मिल पायेगा… नहीं तो ज़ब तक हिमांचल की तर्ज़ भू-क़ानून लागू नहीं होता.. तब तक अवनवरत अनसन जारी रहेगा… सभी सहयोगी संगठनों द्वारा…
शंकर सागर
संस्थापक/मुख्यसंयोजक
भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान उत्तराखंड…
व सभी सहयोगी संगठन..