नफरत नहीं, रोज़गार दो – काकोरी कांड को याद करते हुए सैकड़ों लोगों के साथ विपक्षी दलों, जन संगठनों ने आवाज़ उठाई
देहरादून के दीन दयाल पार्क सहित राज्य के अन्य जगहों में आज जन संगठनों एवं विपक्षी दलों ने काकोरी कांड के शहीदों को याद करते हुए “नफरत नहीं, रोज़गार दो” के नारा के साथ वर्तमान सरकार पर आरोप लगाया कि दिहाड़ी मज़दूरों के लिए बनाये हुए योजनाओं पर अमल ही नहीं हो रहा है, छह साल से मज़दूर बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है, लगातार नफरती अभियानों को बढ़ावा दिया जा रहा है, और वन अधिकार एवं भू कानून पर कदम नहीं उठाया गया है। उल्टा बड़े पूंजीपतियों के हित में नयी सर्विस सेक्टर नीति लायी गयी है जिसके अंतर्गत राज्य की ज़मीन 99 साल तक लीज़ पर निजी कंपनियों को दी जाएगी और उनको सब्सिडी के रूप में करोड़ों या अरबों का पैसे भी दिया जायेगा। 1925 में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्लाह खान और अन्य क्रांतिकारियों ने आज़ाद भारत के लिए अपनी जान इसलिए दी ताकि इस देश में लोकतंत्र, न्याय, भाईचारा और बराबरी स्थापित हो, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों की वजह से ये सब अभी खतरे में हैं। जन सभा में आये सैकड़ों लोगों ने मांग उठाया कि मज़दूरों को भुगतान न देने पर कार्रवाई की जाये; हर मज़दूर का पंजीकरण हो और उनको योजना के अंतर्गत सारे निर्धारित लाभ, जैसे छात्रवृत्ति, सहायता, पेंशन,औजार इत्यादि दिया जाये; सरकार कानून लाये कि किसी को बेघर नहीं किया जायेगा; 2016 के कानून के अनुसार मज़दूर बस्तियों का नियमितीकरण या पुनर्वास हो; आपराधिक नफरती अभियानों पर रोक लगाया जाये; निजी कंपनियों को सब्सिडी देने की जगह में महिला मज़दूरों एवं किसानों को सहायता दिया जाये; राशन हर परिवार को दिया जाये और इसकी मात्र बढ़ाया जाये; और वन अधिकार एवं भू अधिकार को सुनिश्चित किया जाये। उन्होंने संकल्प भी लिया कि वे अपने हक़ों के हित में ही वोट करेंगे और आवाज़ उठाया कि चुनाव निष्पक्ष एवं पारदर्शी हो।
इन मांगों को लेकर मुख्यमंत्री के नाम पर तहसीलदार को ज्ञापन सौंपवाया गया। ज्ञापन सलग्न। ऐसे कार्यक्रम चमियाला, टिहरी गढ़वाल में भी आयोजित किया गया।
उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा दसौनी; भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय कौंसिल सदस्य समर भंडारी; समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ सत्यनारायण सचान; सामाजिक कार्यकर्ता एवं कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुजाता मालिया; पीपल्स साइंस मूवमेंट के विजय भट्ट; चेतना आंदोलन के सुनीता देवी, अशोक कुमार, और पप्पू कुमार; जन संवाद समिति के सतीश धौलखंडी; सर्वोदय मंडल के हरबीर सिंह खुश्वाहा; सामाजिक कार्यकर्ता जयदीप सकलानी ने कार्यक्रम को सम्बोधित किया। रमन पंडित, राजेंद्र शाह, मुकेश उनियाल, जणात्तुर देवी, सविता देवी, सुवा लाल, इत्यादि सैकड़ों लोगों के साथ शामिल रहे।
निवेदक
जन हस्तक्षेप
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सेवा में
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तराखंड सरकार
विषय: राज्य में नफरती अभियानों और कॉर्पोरेट हित नीतियों पर रोक लगाया जाये, मज़दूरों एवं महिलाओं के मुद्दों पर कदम उठाया जाये
महोदय,
सन 1927 में काकोरी कांड के शहीद राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्लाह खान, और उनके साथियों को इन्ही दिनों फ़ासी दी गयी थी। उन शहीदों और उनके विचारों की याद में, और जनता के ज्वलंत मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए, हम आज एकत्रित हुए हैं।
महोदय, हम आपके संज्ञान में इन बिंदुओं को लाना चाह रहे हैं:
– राज्य में लगातार आपराधिक नफरती अभियान चल रही हैं जिस पर उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट आदेश होने के बावजूद सरकार मूकदर्शक बन कर बैठी हुई है। पुरोला में हुई ऐसी अभियान की वजह से निर्दोष लोगों को अपने घरों छोड़ कर भागना पड़ा और अंतराष्ट्रीय स्तर तक हमारे राज्य बदनाम हुआ, लेकिन आज तक एक भी ज़िम्मेदार व्यक्ति या संगठन पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। 2017 से आज तक सतपुली, मसूरी, आराघर, कीर्तिनगर, हरिद्वार, रायवाला, कोटद्वार, चम्बा, अगस्त्यमुनि, घनसाली, देहरादून, रुड़की, नैनीताल और अन्य शहरों में हिंसक घटनाएं हुई हैं और सरकार ने किसी भी ऐसी घटना पर कोई कदम नहीं उठायी है। ऐसे आपराधिक षड़यंत्र हमारे संविधान, उत्तराखंड की संस्कृति और हमारे राज्य और देश की विरासत के खिलाफ है। इसलिए हमारा स्पष्ट मत है कि उच्चतम न्यायालय के नफरती भाषाओ से सम्बंधित सारे आदेशों पर तुरंत अमल करे, ज़िम्मेदार व्यक्तियों पर कार्रवाई करे, और उच्चतम न्यायालय के 2018 के फैसले पर तुरंत अमल करे।
– निर्माण मज़दूर योजना के तहत छात्रवृति एवं अन्य सहायता बेहद कम मज़दूरों को मिल पाए हैं। महामारी के बाद मज़दूरों की स्थिति बद से बदतर हुई है, लेकिन फिर भी सरकार इन योजनाओं को ले कर पूरी तरह से लापरवाह दिख रही है। हम चाहते हैं कि हर मज़दूर का पंजीकरण हो और हर मज़दूर परिवार को राहत, सहायता, छात्रवृति और औजार दिया जाये।
– सरकार किसी को बेघर न करे। 2016 के अधिनियम पर सरकार कोई अमल नहीं किया है। उस कानून के अनुसार, मज़दूर बस्तियों का या तो नियमितीकरण हो या पुनर्वास।
– मज़दूरों को भुगतान समय पर न मिलने पर कार्रवाई करने के लिए हेल्पलाइन खोला जाये।
– नयी सर्विस सेक्टर पालिसी को रद्द किया जाये। ऐसी हर कॉर्पोरेट कंपनी को सब्सिडी देने वाली नीति से आज तक कितना और किस प्रकार का रोज़गार मिला है, इस पर सरकार श्वेत पत्र जारी करे। इन्वेस्टर समिट में आने वाली कम्पनयों को क्या क्या आश्वासन दिया जा रहा है, इन पर भी सरकार स्तिथि स्पष्ट करे।
– महिला मज़दूरों एवं किसानों के लिए ठोस योजना बना कर राहत दिया जाये।
– राशन व्यवस्था द्वारा बुनियादी खाद्य सामग्री हर परिवार को दिया जाये एवं उसकी मात्रा बढ़ाई जाये।
– पहाड़ों में बंदोबस्त किया जाए और 2018 का भू कानून संशोधन को रद्द किया जाए। वन अधिकार अधिनियम के अनुसार हर गांव और पात्र परिवार को अपने वनों और ज़मीनों पर अधिकार पत्र दिया जाए।
– चुनाव को EVM द्वारा न कर पूरी तरह से पारदर्शिता के साथ किया जाये। अगर EVM को इस्तेमाल करना है, हर बूथ पर VVPAT का काउंटिंग और ऑडिट हो।
निवेदक,
उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा दसौनी
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय कौंसिल सदस्य समर भंडारी
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ सत्यनारायण सचान
सामाजिक कार्यकर्ता एवं कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुजाता मालिया
पीपल्स साइंस मूवमेंट के विजय भट्ट
चेतना आंदोलन के सुनीता देवी, अशोक कुमार, पप्पू कुमार, शंकर गोपाल, राजेंद्र शाह, मुकेश उनियाल इत्यादि
जन संवाद समिति के सतीश धौलखंडी
सर्वोदय मंडल के Adv हरबीर सिंह खुश्वाहा
सामाजिक कार्यकर्ता जयदीप सकलानी