उत्तराखंड

उत्तराखंड के बेशकीमती जंगल धू धू कर जल रहे

,शान्ति प्रसाद भट्ट,प्रवक्ता उत्तराखंड कांग्रेस*
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विगत एक माह से उतराखंड के जंगलों में आग लगी है, और आग की लगभग 1000 घटनाएं हो चुकी है,जिनमे 800हेक्टेयर से अधिक वन/मिश्रित वन जलकर राख हो गए है,आलम यह है कि आग रिहायसो तक पहुंच रही है,सरकार ने इस बीच उच्च स्तरीय बैठक, क्षेत्रीय बैठक सहित अधिकारी/कर्मचारी जरूर हरकत मे आए है, पर अभी भी कोई आला अधिकारी आग बुझाते नही दिखा, जिले का कोई आला अधिकारी या प्रदेश कोई मंत्री, विधायक, सासंद आग बुझाते या आग बुझाने के लिए प्रोत्साहित करते नही दिखा! हां यदी मुख्यमंत्री का कोई रोड शो करवाने का आदेश आ जाय तो तत्काल सभी को एकत्र कर लिया जायेगा। विगत दिवस प्रदेश मे एक बड़ी मौक ड्रिल हुई, पर वह आग बुझाने के लिए नही हुई बल्कि चुनाव की थकान के बाद अधिकारी कर्मचारीयो मे स्फूर्ति लाने के लिए जिला मुख्यालयो के निकट रस्म अदायगी टाइप से हुईं! जैसे भूकंप या कोई दुर्घटना मे बचाव के लिए, जबकि आजकल फायर सीजन है सबको पता है किंतु इस पर कुछ नहीं!इस मौक ड्रिल मे भी दावानल पर काबू पाने का कोई ड्रिल नही हुआ! हां नैनीताल जिले मे जरूर वायु सेना के हैलिकाप्टर ने आग बुझाने में मदद की! वह भी तब जब सैन्य संस्थान के दरवाजे पर आग पहुंच गई थीं ,और नैनीताल शहर जहां माननीय उच्च न्यायालय भी है मे धुवां धुवां हो गया था,इसलिए आननफानन मे MI 17 हैलिकाप्टर की मदद ली गई है, वह तो ईश्वर का शुक्र था कि बरसात की फुव्वारे पड़ गई है, इससे वनो मे लगी आग कुछ हद तक बुझ गई थी!
*सरकार से सवाल* ?
🔹 वन एवम वनवासी(ग्रामवासी) वनो की सुरक्षा से विमुख क्यों हो रहे है ?
🔹 प्रदेश भर मे वन पंचायतों को क्यों नही एक्टिव किया गया? क्या वन पंचायतों का गठन पूर्ण हुआ भी है या नहीं?
🔹 कुल कितने “फायर गार्ड” कार्य कर रहे है? कहीं वे अन्य कार्यों पर तो नही लगाये गए है?
🔹वनो मे जल कुंडो और ट्रेरंचेज पर समय रहते कार्य क्यों नही किए जाते?
🔹वर्तमान सरकार ने “फायर सीजन” को गंभीरता से क्यो नही लिया ?
🔹जंगलो मे आग की रोकथाम के लिए क्यो नही फयार सीजन से पूर्व व्यापक प्रचार प्रसार किया ?
🔹हर घर नल योजना के तहत ग्रामों के परंपरागत पाणी के स्रोतों को क्यो खत्म किया गया , उन्हे पुनर्जीवित करने के लिए पेयजल से जुड़े विभागो को युद्ध स्तर पर टास्क क्यो नही दिया?
🔹क्या माननीय मुख्य्मंत्री जी को ऐसे वक्त पर किसी अन्य राज्य मे अपनी पार्टी के प्रचार मे व्यस्त होना चाहिए था? या अपने प्रदेश के महत्वपूर्ण विषयों जैसे वनो की आग की रोक थाम पर युद्ध स्तर पर कार्य करना चाहिए था?
🔹अब बैठके हो रही है, जब कई सौ हेक्टेयर जंगल स्वाह हो गए ?
🔹क्या कर रहें है विधायक, सांसद, और निर्वाचित प्रतिनिधि
*आंकड़े बताते हैं: उतराखंड मे*
📌72%भाग वनो से आच्छादित है
📌18%भाग हिमाच्छादित है
📌12 हजार से अधिक ग्लेशियर है
📌11 बड़ी नदिया है, और अनेक सहायक नदियां है। जो समस्त उतर भारत की जीवन रेखा है और 60करोड़ से अधिक लोगों को जीवन देती है।
📌मात्र 6%कृषि योग्य भुमि है।
*यही वो जंगल है, जो हमें:*
🔹 *वायु सुरक्षा*
🔹 *जल सुरक्षा*
🔹 *अन्न सुरक्षा*
🔹 *चारा पत्ती,*
🔹 *खेती पशुपालन*
🔹 *गीत संगीत देते* है ।
*विशेष:*
🔹इस प्रदेश के सबसे अनुभवी नेता *पूर्व मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत जी* ने अपने कार्यकाल मे केन्द्रीय सरकार को *चीड़ के पातन का* महत्वपूर्ण सुझाव दिया था और इसके लिए क्लस्टर बना कर अनुमति भी मांगी थीं ताकी चीड़ के पेड़ को हटा कर बांझ बुरास सहित चौड़ी पत्ती के पेड़ों को लगाया जाय, पर केंद्र ने अनुमती नहीं दी।
🔹 प्रकृति से हिले मिले *भू वैज्ञानिक* *डा.एसपी सती* का यह संलग्न आलेख भी यही कहता है।
🔹 उतराखंड मे *वनाधिकार के* *प्रेरणा स्रोत श्री प्रेम बहुखंडी* जी भी इसी लाइन पर अपने अनेकों आलेखों/परिचर्चाओ को बल देते है
*फोटोसाभार:*
1: श्री सुभाष राणा वरिष्ट पत्रकार टिहरी(ग्राम कूठा मे रिहायस तक पहुंचती आग)
2: श्री कुलदीप पंवार जी द्वारा आधे घंटे पहले खींची गई फ़ोटो (नई टिहरी शहर से सामने प्रतापनगर पीढ़ी पर्वत के नीचे पटुडी गांव के ऊपर लगी आग का फ़ोटो)
3: भू वैज्ञानिक डॉ एस पी सती जी का अख़बार मे प्रकाशित आलेख

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