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रमेश कुडियाल
देहरादून। बेशक कशमीर फाइल्स भले ही कशमीरी पंडितों के ऊपर हुए अत्याचार को प्रदर्शित करती हुइ फिल्म हो उसमें कशमीरी पंडितों का दर्द हो, बेइंतहा दर्द हो और एक खास समुदाय की ओर से उन्हें पलायन करने पर मजबूर करने की दासतां हो लेकिन एक एसी ही कहानी टिहरी की भी है। भले ही टिहरी फाइल के किरदार किसी धर्म समुदाय के न हों उसमें मार पीट हत्या जैसी बात न हो लेकिन पलायन का दर्द टिहरी के लोगों ने भी झेला है। बेशक वह नये पुर्नवास स्थलों पर बहतर सुविधाओं के साथ आगे बड़ रहे हों लेकिन अपनी माटी से उखड़ने का दर्द उनके चहरों पर आ ही जाता है।
पुर्नवास निदेशालय की फाइलों से धूल छांटी जाये तो अलग किस्म का दर्द सामने आयेगा। कई मूल विस्थापितों को उनका हक मिलता हुआ नहीं दिखता। वहीं अधिकारी-नेता-कर्मचारी गठजोड़ की ऐसी कहानी सामने आयेगी जहां मूल विस्थापित चहरे पर अथा दर्द लिये पुर्नवास निदेशालय के चक्कर काटते दिखते थे। यहां तो सरकार ही लोगों के खिलाफ खड़ी दिखती थी।
टिहरी की फाइल खुलेगी तो पुर्नवास निदेशालय मिट्टी के गुबार में सना दिखेगा। यहां जहां-तहां भ्रष्टाचार का अत्याचार दिखेगा। यह फाइलें कहीं ऐसे लोगों को मुस्कराहट देगी जिनका टिहरी से कोई खास जुडाव नहीं था लेकिन हरे पत्तों के वजन से ठेली-रेहड़ी वालों तक ने दुकाने और मकान अपने नाम करवा दिये। कइयों ने विस्थापन के नाम पर कई खेल खेले पात्रता को खरीदने बेचने का काम किया। इस में नेता-अधिकारी-पत्रकार भी टिहरी फाइल के किरदार रहें हैं, इन्होंने खासतौर पर ग्रामीण विस्थापितों की पात्रता खरीदी और उनकों मिली जमीनों का सौदा किया अब स्थिती यह है कि कई विस्थापित तो आज बेघरबार हैं जब्की पात्रता खरीदने बेचने वाले किरदार बड़ी कोठियों में रहतें हैं और महंगी गाड़ियों में घूमते हैं।
उत्तराखंड की अंतिृम सरकार के दौरान तो टिहरी के लोगों के साथ खूब छल हुआ। तब तेजी से टिहरी शहर खाली कराया गया और अनाब-शनाब पात्रता बनाई गयी। टिहरी के विस्थापन को लेकर कोई बड़ी फिल्म सामने नहीं आई। तबके समाचार पत्रों की कत्रनों को देखें तो लोंगो के दर्द को समझा जा सकता है। आंदोलन के लिए तनी मुठ्ठियां देखी जा सकती हैं। अपने हक के लिय लड़ते लोगों के उपर लाठियां बरसती देखी जा सकती हैं। उन्हें जेलों में ठूंसा देखा जा सकता है। ध्याणियों के मेत छूटे देखे जा सकते हैं, डूबते मंदिर डूबते खेत डूबते पित्रकुडा देखे जा सकते हैं और लोगों के भविष्य के तैरते सपने देखे जा सकते हैं।
क्या कभी किसी कहानिकार-फिल्मकार की नजर टिहरी पुर्नवास निदेशालय की फाइलों पर भी पड़ेगी जिसमें अनेक कहानियां बंद है वह कहानियां जो अपने जड़ से उखड़ने की है अपनो से बिछड़ने की हैं।