रमेश कुड़ियाल
देहरादून। उत्तराखंड आंदोलन का दौर था। तब गांवों से लेकर शहरों तक बस एक ही नारा था आज दो -अभी दो उत्तराखंड राज्य दो। सड़कें राज्य आंदोलनकारियों से पटी रहती थीं।राजनीतिक दलों से लेकर छात्र-छात्राएं, शिक्षक-कर्मचारी, दुकानदार, ग्रामीण यानि सबके सब आंदोलन में शरीक थे। ऐसे में भला संस्कृति कर्मी कैसे अलग रह सकते थे।उत्तरकाशी में तब कला दर्पण की अगुवाई में संस्कृति कर्मियों ने प्रभात फेरी निकाल कर जनता में चेतना का जो सूत्रपात किया, वह इसआंदोलन में मील का पत्थर साबित हुआ। इसी दौर में गढ़वाली के प्रख्यात गीतकार एवं गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने पहली बार जनांदोलन के आग उगलते गीत लिखे। इससे पहले नेगी उत्तराखंडी समाज के पीड़ा ,दुख-दर्द,परंपराओं, प्रकृति जैसे विषयों पर अपने गीतों के लिए जाने जाते थे।
कला दर्पण की पहल पर जब उत्तरकाशी के रामलीला मंच पर एकित्रत होकर प्रभात फेरी निकाली जाने लगी,तब डाक्टर अतुल शर्मा का गीत लड़ के लेंगे, भिड़ के लेंगे उत्तराखंड और बल्ली सिंह चीता का गीत ले मशालें चल पड़े लोग मेरे गांव के ही मुख्य रूप से गाएजाते थे। तब महसूस किया जाने लगा था कि प्रभात फेरी के लिएउत्तरांक्ष आंदोलन पर आधारित कुछ गीत होने चाहिए। उन दिनों प्रख्यात गढ़गायक नरेंद्र सिंह नेगी उत्तरकाशी में अपर जिला सूचना अधिकारी के रूप में तैनात थे। विचार किया गया कि उनसे ही गढ़वाली बोली में एक गीत प्रभात फेरी के लिए लिखवाया जाए। उस दौर में हर कोई राज्य आंदोलन के पक्ष में खड़ा था। नेगी जी से आग्रह कियागया तो उन्होंने उठा जागा उत्तराखंडियों गीत लिखा। कहा जा सकता है कि बस यहीं से नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने राजनीतिक गीतों की शुरूआत की। वह कभी-कभार प्रभात फेरी में भी शामिल होते थे।
सुरक्षा रावत हुड़के के साथ प्रभात फेरी की अगुवाई करते थे तो जनगीतों को ओम बधानी भी स्वर देते थे। मदन मोहन बिजल्वाण, दिनेश भट्ट, राघवेंद्र उनियाल, राजीव तलवाड़, गणेश बलूनी, विकास मैठाणी, सुधा रावत,वर्षा डोभाल, प्रीति डोभाल, प्रमोद पैन्यूली, पमिता पैन्यूली, दीना रमोला,दिनेशउप्पल, मोहन डबराल, सुरेंद्र बलोदी और मैं भी उस प्रभात फेरी में गाए जाने वाले गीतों को स्वर देते थे। नेगी जी ने तब पहली बार कखजाणा छा तुम लोग,उत्तराखंडआंदोलन मा लिखा।इसी दौरान मुफ्फरनगर कांड हुआ तो नरेंद्र सिंह नेगी का एक और गीत तेरा जुल्म को हिसाब चुकौला एक दिन, लाठी गोलियों को हिसाब द्यौला एकदिन सामने आ गया राज्य आंदोलन जब सुप्त पड़ने लगा तो नेगी जी का आंदोलनकारियों को ढाढस बंधाता एक और गीत की रचना हुई कि देर होलि, अबेर होलि, होलिजरूर सबेर होलि।
जब हम उत्तराखंड आंदोलन को गीतों से ऊर्जा देने की बात करते हैं तो चिपको आंदेालन के कवि धनश्याम सैलानी को कैसेभूल सकते हैं। उनके गीत भी उन दिनों खूब गाएजाते थे। उत्तरकाशी में एक विशाल रैली के दौरान मंच पर जब स्थिति बिगड़ने के आसार लगने लगे थे,तब घनश्याम सैलानी ने खुद मंच संभालकर जनगीतों की जो गंगा बहाई,उसने आंदोलन को न केवल नई ऊष्मा दी, बल्कि अराजकता से भी बचाया।
आज राज्य स्थापना की एक और वर्षगांठ मना रहे हैं तब वह सब कवि, गीतकारों और सांस्कृतिक मोर्चे पर खड़े रहे चेहरे भीसामने आ रहे हैं, जिनके गीतों ने इस आंदोलन को ऊर्जावान बनाएर खा। भले ही राजनीतिक दल,सरकार और आंदोलनकारी भी उन्हें भुला चुके हों, लेकिन तब कवि, गीतकारों और सांस्कृतिक मोर्चे पर खड़े रहे लोगों ने कभी भी आंदोलन की लौ नहीं बुझने दी।