_ डाअतुल शर्मा
इेहरादून। यह एक अद्भुत समय था । पूरा उत्तराखंड आंदोलन जोरो पर था ।संस्कृतिकर्मी और जनकवियो ने उत्तरकाशी मे काव्य पाठ किया था । और लोग स्वर मे स्वर मिलाते रहे ।
ऐतिहासिक पल था यह ।कवि धर्मान्द उनियाल पथिक ( स्मृति शेष ) अध्यक्षता कर रहे थे और कवि नागेन्द् नीलाम्बरम् जगूडी संचालन कर रहे थे ।कार्यक्रम के सक्रिय आयोजको मे कवि पत्रकार रमेश कुडियाल के साथ वहां लक्षमी प्रसाद नौटियाल ( स्मृति शेष) पत्रकार प्रकाश पुरोहित जयदीप ( स्मृति शेष) मदनमोहन विजलवान सुरक्षा रावत सुभाष रावत दिनेश भाई और बहुत से आन्दोलन कारी संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे ।यह भी उत्तराखंड आंदोलन मे सास्कृतिक और साहित्यिक योगदान का प्रतीक कार्यक्रम था ।
मैं, गिर्दा, बल्ली भाई और जहूर आलम बस से उत्तरकाशी बस से पहुचे थे । रास्ते मे तेज बारिश ने रास्ता भी रोका । हमारे सार बस मे उत्तरकाशी की संस्था कला दर्पण के बहुत से साथी भी थे ।बस मे हमारे जनगीतो के कैसेट लगे हुए थे । अद्भुत समय महूसस किया है हम सब ने ।
कवि सम्मेलन मे कौन कौन भागीदार थे वह मुझे आज भी याद है ।गिर्दा (स्मृति शेष) नरेन्द्र सिह नेगी, जहूर आलमख् बल्ली सिह चीमा, राजेन टोडरिया ( स्मृति शेष) और इनके साथ मै अपने जनगीत के साथ शामिल रहा ।इनमे देवेन्द्र जोशी और पूरण पंत पथिक ( स्मृति शेष ) आदि बहुत कवि शामिल हुए ।
मुझे याद है जब मैने जनगीत सुनाया तो सब साथ गाने लगे । तभी भाई रमेश कुडियाल ने फरमाइश की कि आप अपना जनगीत ” अब तो सड़को पर आओ सुनाइये ” ।अगले दिन एक सास्कृतिक मोर्चे मे शामिल होने के लिये मै गिर्दा और बल्ली भाई श्रीनगर गढ़वाल चले गये रास्ते मे के के तिवारी भी रहे । आज हम उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस मना रहे है पर हमे उत्तराखंड आंदोलन मे साहित्य और सांस्कृतिक मोर्चो के योगदान की भी बरबस याद आ रही है ।