लखनऊ। पिता की संपत्ति में अपने हक को लेकर पिछले 25 सालों से आंदोलनरत उमा लखनपाल अब इस दुनिया में नहीं रहीं। इस कानूनी, लोकतांत्रिक और संवैधानिक लड़ाई में उन्होंने अपने पक्ष में पारित हाइकोर्ट के आदेशों का पालन कराने के लिए 12 साल तक लगातार लखनऊ में विधानभवन के सामने धरना प्रदर्शन करने के अलावा प्रदेश के मुख्य सचिव जैसे कई बड़े अधिकारियों का घेराव आदि करके अकेले ही पुलिस प्रशासन की नींद हराम कर दी थी। इस बीच श्रीमती लखनपाल ने अपने बड़े भाई जनार्दन उर्फ़ भानू तिवारी द्वारा पुलिस के साथ सांठगांठ करके पिता की समूची संपत्ति को अकेले ही हड़प कर बेच देने और अपने छोटे भाई व बहन को उनके अधिकार से वंचित कर देने की साज़िश के अलावा संपत्ति के लालच में अपने छोटे भाई राघवेंद्र तिवारी उर्फ़ राघव का हत्या के इरादे से अपहरण कर उसे गायब कर दिए जाने को लेकर पुलिस ज़ुल्म व उत्पीड़न के खिलाफ सीबीआई जांच के लिए भी धरना प्रदर्शन किया था। लेकिन इसके बाद धरनास्थल पर उनपर हुए जानलेवा हमले के खिलाफ उन्होंने लगातार दो साल तक दिल्ली के जंतर मंतर पर भी धरना प्रदर्शन किया।
विधानभवन के सामने स्थित धरनास्थल को प्रदेश की मायावती सरकार द्वारा खत्म कर दिए जाने के बाद वह विभिन्न अदालतों में पिछले 13 सालों से अपने हक की कानूनी लड़ाई लड़ रहीं थीं लेकिन इसी बीच वह ब्रेस्ट कैंसर का शिकार हो गईं। इस तरह अपने हक के लिए बिना झुके और हारे एक समझौताविहीन लड़ाई लड़ने वाली व पूरे उत्तर प्रदेश में चर्चित उमा लखनपाल अंतत: कैंसर जैसी घातक और जानलेवा बीमारी से हार गईं।
लखनऊ की खुर्शेदबाग कालोनी में अपने पिता के मकान में सपरिवार रहने वाली 58 वर्षीय श्रीमती उमा लखनपाल ने लगातार दो साल तक मौत से जूझने के बाद विगत शनिवार को बलरामपुर अस्पताल में अंतिम सांस ली। इस तरह कैंसर ने उनके ऐतिहासिक मगर अधूरे आंदोलन पर पूर्ण विराम लगा दिया। श्रीमती उमा लखनपाल अपने पीछे एक मात्र पुत्र सौहार्द लखनपाल व पति सुप्रिय लखनपाल को छोड़ गईं हैं। उनके पुत्र सौहार्द लखनपाल के अनुसार अब वह अपनी माता के सपनों और अधूरी लड़ाई को पूरा करेंगे।
श्रीमती उमा लखनपाल की न्यायप्रियता, जीवटता और जुझारूपन को सलाम करते हुए प्रदेश व स्थानीय स्तर के कई संगठनों ने उन्हें अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की है।
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