उत्तराखंडसामाजिक

सवाल हिमालयी धामों की सुरक्षा का

प्रसाद भट्ट का भी कहना है कि किसी भी स्थान की सुंदरता तो अच्छी लगती ही है, लेकिन सुंदरता से अधिक महत्त्वपूर्ण उस स्थल की स्थिरता है। अगर ये तीर्थ स्थल ही नहीं रहेंगे तो सुंदरता कहां रहेगी?
चार धाम
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हालिया बद्री-केदार यात्रा के बाद देश का ध्यान हिमालय के चार धामों की ओर पुनः आकर्षित होना स्वाभाविक है। इन पवित्र स्थलों का महत्त्व बढ़ाने के लिए 2013 की हिमालयी सुनामी से तवाह हुए केदारनाथ धाम के पुनर्निमाण के साथ ही वदरीनाथ की कायापलट का काम भी चल रहा है। वदरी-केदार के साथ गंगोत्री और यमुनोत्री को भी रेल लिंक से जोड़ने के लिए सर्वेक्षण कार्य चल रहा है। सुंदरता तो सभी को आकर्षित करती है, लेकिन असली सवाल सुरक्षा का है।
हिमालय पर एक के बाद एक जिस तरह विप्लव हो रहे हैं, उनके आलोक में पवित्र स्थलों की स्थिरता का विषय सुंदरता से अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। केदारनाथ क्षेत्र में 22 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक 3 वड़े एवलांच आने के वाद उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने केदारनाथ मंदिर को एवलांच से तो सुरक्षित पाया मगर साथ सरकार को अवगत कराया कि केदारनाथ धाम चोरावाड़ी और निकटवर्ती ग्लेशियरों से आए मोरेन या मलवे के आउटवॉश प्लेन पर स्थित है, जिस पर भारी निर्माण खतरनाक सावित हो सकता है।
इसी आधार पर वाडिया हिमालयी भूगर्भ संस्थान, उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, भारतीय भूगर्भ विज्ञान सर्वेक्षण विभाग ने पूर्व में केदारनाथ में भारी निर्माण की मनाही की थी। लेकिन पुनर्निमाण के नाम पर वहां जितने भारी-भरकम निर्माण कार्य होने थे, वे पहले ही हो चुके हैं, और अव सौंदर्यीकरण और आवासीय उद्देश्य के निर्माण कार्य चल रहे हैं। प्रख्यात पर्यावरणविद् पद्मभूषण चंडी
चिपको नेता कहते हैं कि मौजूदा हालात में चारों ही धाम किसी न किसी कारण से सुरक्षित नहीं हैं। चारों हिमालयी धामों में से कहीं भी क्षेत्र विशेष की धारक क्षमता से अधिक मानवीय भार नहीं पड़ना चाहिए अन्यथा हमें जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। उत्तराखंड सरकार द्वारा
गठित डॉ. पियूष रौतेला विशेषज्ञ समिति ने भी कुछ घटनाओं का उल्लेख करते हुए एवलांच और भूस्खलन को सबसे अधिक चिंता का विषय वताया है। केदारनाथ की तरह ही विशेषज्ञों की राय के विना वदरीनाथ का मास्टर प्लान भी वना । इससे पहले 1974 में विड़ला ग्रुप के जयश्री ट्रस्ट द्वारा वदरीनाथ के जीर्णोद्धार का प्रयास किया गया था, लेकिन चिपको नेता चंडी प्रसाद भट्ट, गौरा देवी तथा व्लॉक प्रमुख गोविन्द सिंह रावत आदि के विरोध के चलते उत्तर प्रदेश सरकार ने निर्माण कार्य रुकवा दिया था। बदरीनाथ एवलांच भूस्खलन और भूकंप के खतरों की जद में है, और वहां लगभग हर 4 या 5 साल बाद एवलांच से भारी नुकसान होता
रहता है। प्राचीनकाल में अनुभवी लोगों ने वदरीनाथ मंदिर का निर्माण ऐसी जगह पर किया जहां एयरवोर्न एवलांच सीधे मंदिर के ऊपर से निकल जाते हैं, और वाकी एवलांच अगल-बगल से सीधे अलकनंदा में गिर जाते हैं, इसलिए मंदिर तो काफी हद तक सुरक्षित माना जाता है, लेकिन 3 वर्ग किमी. में 85 हैक्टेयर में फैले वदरीधाम का ज्यादातर हिस्सा एवलांच और भूस्खसलन की दृष्टि से अति संवेदनशील है। वास्तव में जब तक वहां के चप्पे-चप्पे का भौगोलिक और भूगर्भीय अध्ययन नहीं किया जाता तब तक किसी भी तरह के मास्टर प्लान का कोई औचित्य नहीं है। वदरीनाथ के तप्तकुंडों के गर्म पानी के तापमान और वॉल्यूम का डाटा तैयार किए जाने की भी जरूरत है क्योंकि अनावश्यक छेड़छाड़ से पानी के स्रोत सूख जाने का खतरा बना रहता है। भागीरथी के उद्गम क्षेत्र में गंगोत्री मंदिर पर भैरोंझाप नाला खतरा बना हुआ है। इसरो द्वारा देश के चोटी के वैज्ञानिक संस्थानों की मदद से तैयार किए गए लैंड स्लाइड जोनेशन मैप के अनुसार गंगोत्री क्षेत्र में 97 वर्ग किमी. इलाका भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील है, जिसमें से 14 वर्ग किमी. का इलाका अति संवेदनशील है।
गोमुख का भी 68 वर्ग किमी. क्षेत्र संवेदनशील बताया गया है। भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के वैज्ञानिक पीवीएस रावत ने अपनी एक अध्ययन रिपोर्ट में चेताया है कि अगर भैरोंझाप नाले का उपचार नहीं किया गया तो ऊपर से गिरने वाले बड़े वोल्डर गंगोत्री मंदिर को धराशायी करने के साथ ही भारी जनहानि भी कर सकते हैं। यमुनोत्री मंदिर के सिरहाने खड़े कालिंदी पर्वत से 2004 में हुए भूस्खलन से मंदिर परिसर के कई निर्माण क्षतिग्रस्त हुए तथा छह लोगों की मौत हुई थी। 2007 में यमुनोत्री से आगे सप्तऋषि कुंड की और यमुना पर झील बनने से तवाही का खतरा मंडराया जो किसी तरह टल गया। 2010 से तो हर साल यमुना में उफान आने से मंदिर के निचले हिस्से में कटाव शुरू हो गया है। कालिन्दी पर्वत यमुनोत्री मन्दिर के लिए स्थायी खतरा वन गया है। 2001 में यमुना नदी में बाढ़ आने से मंदिर का कुछ भाग वह गया था।
[11/1, 12:27] Jai Singh Rawat: नई शिक्षा नीति के कारण आ सकता ग्रुप स्कूली शिक्षा के साथ ही नीट और है परीक्षा पैटर्न में बदलाव
लूनी ग्रुप आफ एजूकेशन ब जुनार भारत में शिक्षा के क्षेत्र में नया आयाम स्थापित कर रहा है। बलूनी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के लिए कोचिंग देने वाला अग्रणी संस्थान है। बलूनी क्लासेस से इस बार भी नीट में एक सौ से भी अधिक छात्र एमबीबीएस के लिए सलेक्ट हुए हैं। उत्तराखंड में तो सरकारी मेडिकल कालेज में पढ़ने वाला हर तीसरा छात्र बलूनी क्लासेस का प्रोडक्ट है। बलूनी क्लासेस के शिखर छूने के पीछे ग्रुप चेयरमैन डा. नवीन बलूनी की दूरदर्शी सोच, अथक मेहनत और एमडी विपिन बलूनी का कुशल प्रबंधन है। चेयरमैन डा. नवीन बलूनी का कहना है कि देश में नयी शिक्षा नीति यानी एनईपी लागू की जा रही है। यह पालिसी पूरी तरह से छात्रों के हित में है। ऐसे में जिन छात्रों का कंसेप्ट क्लियर होगा और फोकस होकर पढ़ेंगे तो उनको नीट और इंजीनियरिंग परीक्षाओं में सफल होने के चांस बढ़ जाएंगे।
कंसेप्ट क्लियर और फोकस रहने पर ही मिलेगी सफलता
छात्र हित में है नई शिक्षा नीति बलूनी ग्रुप के चेयरमैन डा. नवीन बलूनी के अनुसार नई एजूकेशन पालिसी पूरी तरह से छात्रों के हित में तैयार की गयी है। इस पालिसी में छात्रों पर पढ़ाई का बोझ कम करने का प्रयास किया गया है। इससे उन बच्चों को लाभ होगा जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। उनके अनुसार नीट और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के लिए निकट भविष्य पैटर्न बदल सकता है। यानी अब तक तो नीट और इंजीनियरिंग में 11 और 12वीं के विषयों से ही प्रश्न पूछे जाते थे लेकिन नई पालिसी के तहत परीक्षा 12वीं कक्षा के आधार पर ही होगी। ऐसे में छात्रों पर परीक्षा और पढ़ाई का आधा बोझ कम हो जाएगा। इसी तरह से बोर्ड परीक्षाओं में अब लंबे सवाल-जवाबों की बजाय बहुविकल्पीय प्रश्न पूछने पर जोर दिया जाएगा। यानी अब पढ़ाई को रटने की जरूरत नहीं होगी। यदि छात्रों का कंसेप्ट क्लियर है तो उसे सवाल का जवाब देने में अधिक परेशानी नहीं होगी। नई एजूकेशन पालिसी का ध्येय बच्चों पर बोझ कम करना और शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण

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